Atmadharma magazine - Ank 296
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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जेठ : २४९४ : आत्मधर्म : २१ :
पू. गुरुदेवना विहारना मोरबी–ववाणीया–वांकानेर वगेरेना समाचारो
तथा बीजा विविध समाचारो जे गतांकमां छापवा मोकलेल, पण मर्यादित पृष्ठ
संख्याने कारणे समावेश थई शकेल नहि, ते समाचारो आ अंकमां अहीं आप्या
छे. विलंब माटे पाठको क्षमा करे. (सं.)
परम पूज्य गुरुदेवनो सौराष्ट्रमां धर्मप्रभावक विहार आनंदपूर्वक थयो. ठेरठेर
चैत्र सुद ८ थी ११ गुरुदेव मोरबी पधार्या; त्यां राष्ट्रीयशाळाना बेन ब्र.
विदुबेन तथा विद्यार्थी बाळकोना भजननो सुंदर कार्यक्रम थयो हतो; तथा जिनेन्द्रदेवनी
रथयात्रा नीकळी हती. श्वेतांबर संघना सहकारने लीधे तेमना चांदीना रथमां
जिनेन्द्रदेवनी भव्य रथयात्रा नीकळी हती.
ववाणीया:–
श्रीमद् राजचंद्र जन्मधामना ट्रस्टीओनी विनंतिथी गुरुदेव चैत्र सुद
११ नी सांजे ववाणीया पधार्या हता; बीजा सेंकडो जिज्ञासुओ पण आ प्रसंगे आव्या
हता. सागर (मध्य प्रदेश) ना शेठश्री भगवानदासजी शोभालालजी वगेेरे पण आव्या
हता. शरूमां जन्मधामनुं अवलोकन कर्या बाद, राष्ट्रियशाळाना बाळकोए भजन करेल;
तथा पू. बेनश्री–बेने वैराग्यभीना भावे “धन्य रे दिवस आ अहो...” ए काव्य
गवडाव्युं हतुं. पछी पू. गुरुदेवे अपूर्वअवसर’मांथी पांच कडी अध्यात्ममस्तीपूर्वक गाई
हती. ने तेना भावोनुं टूंकुं विवेचन करीने मुनिदशानी ने सर्वज्ञपदनी भावनामां सौने
तरबोळ कर्या हता. छेल्ले छेल्ले भावभीना हृदये विदेहनी वातने याद करीने कह्युं के–
हम परदेशी पंथी साधुजी .... आ रे देशके नांही जी.....
स्वरूप साधन पूर्ण करीने, जाशुं सिद्धालय स्वदेश जो...
सादि–अनंत अनंत समाधिसुखमय एवा ए सिद्धपदनो घणो महिमा कर्यो