Atmadharma magazine - Ank 296
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म जेठ : २४९४ :
साचुं ज्ञान ने चारित्र शुं छे तेनी लोकोने खबर नथी. अंतरना चैतन्यमां
एकाग्र थतां एक सूक्ष्मविकल्प पण पोतापणे भासतो नथी–एवा शुद्धचैतन्यना
अनुभवसहितनुं ज्ञान ते साचुं ज्ञान छे, ने एवा ज्ञानपूर्वक आनंदमां एकाग्रता ते
साचुं आचरण छे. राग अने बाह्यक्रिया ए धर्मीने निजस्वरूपे भासता नथी. जेनाथी
जन्म मरणनो अंत न आवे एवा ज्ञानने ज्ञान कोण कहे? –एवा आचरणने आचरण
कोण कहे? सम्यकत्व वगर शुभरागना आचरण पण अनंतवार जीव करी चूक्यो, पण
जन्म–मरणथी छूटकारो न थयो; भगवान तेना शुभआचरणने साचुं आचरण कहेता
नथी.
प्रश्न:– पंचमकाळमां आवुं ज्ञान ने आचरण होय?
उत्तर:– हा; ज्ञान अने आचरणनुं स्वरूप तो त्रणे काळे आवुं ज छे; पंचम–
काळमां कांई तेनुं बीजुं स्वरूप न थई जाय, जुओ, अत्यारे विदेहमां अनेक मुनिओ
आवा ज्ञान–आचरणसहित विचरे छे, तेमांथी छठ्ठागुणस्थानवर्ती कोई मुनिने संहरण
करीने कोई आ भरतक्षेत्रमां मुकी जाय, तो भरतक्षेत्र अने पंचमकाळ होवा छतां,
विदेहना ते मुनि क्षपकश्रेणीवडे अहीं केवळज्ञान पामी शके छे. तेने कांई आ क्षेत्र के काळ
नडता नथी. जीव पोताना बंध–मोक्षने स्वाधीनपणे एकलो करे छे. जीवनुं कार्यक्षेत्र
पोतामां छे, बहारमां तेनुं कार्यक्षेत्र जरापण नथी आम परथी अत्यंत भिन्नता समजीने
तारा निजस्वरूपने तुं संभाळ. –आ ज भावमरणथी छूटवानो ने परम आनंदनी
प्राप्तिनो उपाय छे.


प्रवासमां ठेरठेर बालविभागना सभ्यो मळता....खूबज आनंदित
थता....बालविभाग प्रत्ये तेमना हृदयमां केटलो प्रेम छे ते देखीने आनंद
थतो....उत्साहपूर्वक हजारो बालबंधुओ पोताना जीवनमां धर्मना संस्कार सींची रह्या
छे....ए संस्कार एमना जीवनमां महान उपयोगी थशे. बालसभ्योने उल्लास माटे
धन्यवाद!
– खैरागढ (मध्य प्रदेश) मां दिगंबर जिनमंदिर सं. २०१प मां बंधायेलुं ने
२०१प ना चैत्रसुद एकमे गुरुदेव खैरागढ पधार्या त्यारे जिनबिंब–वेदीप्रतिष्ठा थयेली;
आ चैत्र सुद एकमे दशमी वर्षगांठ प्रसंगे जिनमंदिर उपर कलश तथा ध्वज चडाववानो
उत्सव थयो. मंदिर उपर दश वर्षे पहेली ज वार कळश तथा ध्वज चडता होवाथी त्यांना
मुमुक्षुओने घणो उत्साह हतो ने आनंदथी तेनो उत्सव कर्यो हतो.