: २४ : आत्मधर्म जेठ : २४९४ :
हती, वद आठमे स्वाध्याय मंदिरने तथा तेमां समयसारनी स्थापनाने ३१ मुं वर्ष बेठुं,
ते दिवसे समयसारजीनी रथयात्रा नीकळी हती अने भक्ति स्वाध्याय मंदिरमां थई
हती. जेठ सुद पांचमे श्रुतपंचमीनो उत्सव पण आनंदथी उजवायो हतो....
जिनवाणीमातानी रथयात्रा नीकळी हती. जय जिनेन्द्र
तीर्थंकरोनुं ‘अंतरीक्ष’पणुं दिगंबर जैनसिद्धान्तमां ज छे,
श्वेताम्बरआम्नायमां अंतरीक्षपणुं नथी
महाराष्ट्रमां शिरपुर (अंतरीक्ष पार्श्वनाथ) ना श्री पवळी दिगंबर जैन
मंदिर’ ना हक्क् संबंधी केसनो चुकादो न्यायाधीश श्री रत्नपारखीए पूर्णपणे
दिगंबर जैनसमाजनी तरफेणमां, अने श्वेतांबरसमाजनी विरुद्धमां आपेल छे.
अंतरीक्ष पार्श्वनाथ” मां अंतरीक्ष शब्द ज दिगंबरत्व सिद्ध करे छे–एम युक्ति अने
शास्त्राधारपूर्वक महाराष्ट्रना सुप्रसिद्ध धाराशास्त्री श्री वि.वा. समुद्रजीए कोर्टमां
साबित कर्युं हतुं. ‘अंतरीक्ष’ पणुं ए मात्र पार्श्वनाथ भगवाननुं नहि पण जैनोना
चोवीसे तीर्थंकरोनुं विशेषण छे. ‘अंतरीक्ष’ नो अर्थ थाय छे–आकाशगामीपणुं.
तीर्थंकरोने केवळज्ञान थया पछी तेओ सहजपणे जमीनथी पांचहजार धनुष ऊंचे
आकाशमां अंतरीक्ष विराजे छे, पृथ्वीपर चालता नथी; तेथी तीर्थंकरभगवंतो
अंतरीक्ष’ छे. आवुं अंतरीक्षपणुं दिगंबर जैनसमाजमां ज मान्य छे;
श्वेतांबरसमाजमां तीर्थंकरोने अंतरीक्ष (आकाशगामी) स्वीकारवामां आव्या नथी,
तेओ तो तीर्थंकर जमीन उपर पण चाले एम कहे छे, आ रीते श्वेतांबरमां
अंतरीक्षपणुं होतुं नथी. माटे ‘अंतरीक्ष–पार्श्वनाथ’ मां जे अंतरीक्ष विशेषण छे ते
ज साबित करे छे के आ मंदिर दिगंबर जैनसिद्धान्त अनुसार छे.
(‘प्रेरणा’ मराठी पत्रिकाना आधारे)