अमे पुण्यने धर्म मानता ते मान्यता छूटी गई.
अमे जीव अने अजीवना परिणमनने स्वतंत्र जाण्युं.
अमे जिनेन्द्रदेवना दर्शन करवा लाग्या ने रात्रीभोजन छोडयुं.
अमे तत्त्वज्ञाननो अभ्यास कर्यो ने सीनेमा जोवुं बंध कर्युं.
दर्शननो केटलो महिमा छे ते वांचीने अमे पण कायम दर्शन करवा जवानो निश्चय
कर्यो छे. (धन्यवाद!)
पड्यो, अने मने लाग्युं के आत्मानुं ज करवा जेवुं छे. तो आजथी बालविभागमां
जोडावानी मारी ईच्छा छे.
तत्त्वनी गंभीरता जाणवा तथा समजवा माटे खूब तालावेली थाय छे. आत्मधर्म
आवतां सौ प्रथम ते विभाग उपर नजर पडे छे. बालविभाग नाना–मोटा सौने
ज्ञान साथे आनंद आपे छे. बालविभाग शरू करवा माटे अभिनंदन! अमे सभ्य
थवामां मोडा पड्या ते बदल दुःख थाय छे. ली. राजेन्द्र जैन
कोई आत्मानुभवी संतने पूछ.