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परमआनंदथी भरेलुं छे. अतीन्द्रियआनंदनो भंडार आत्मा पोते पूर्ण आनंदरूपे
परिणमी गयो. –ते आनंद सहज छे. ते आनंदरूपी रसथी भरेलुं होवाथी ज्ञान स–रस
छे. अरस आत्मा जडना रसथी रहित छे. पण सरस अत्मा निजानंदना रसथी भरपूर
छे. आवो अरस–सरस आत्मा छे. ज्ञान तेनुं स्वरूप छे, ने पुद्गलनुं रूप तेनामां नथी
तेथी अरूप–स्वरूप आत्मा छे. आवा केवळज्ञानरूपे परिणमेलो आत्मा ते मंगळरूपे छे.
ते जगतमां उत्कृष्ट तेज–प्रकाश छे. आवा आत्मानी प्रतीत करतां सम्यग्द्रष्टि धर्मात्मा
मोक्षना मारगमां केलि करे छे. मोक्ष परम आनंदरूप छे, ने ते मोक्षमार्ग साधनारा
समकिती धर्मात्मा ते पण मोक्षमार्गमां आनंदनी केली करे छे. अहो, ते जगतमां
जिनेश्वरदेवना लघुनंदन छे; जगतथी उदास छे ने भगवानना दास छे. जघन्य
(नानामां नाना) अंतरात्मा पण शिवमगचारी छे, मोक्षना साधक छे. ने तेना फळमां
पूर्ण उत्कृष्ट परिणमन थतां केवळज्ञान ने पूर्णआनंद थाय छे. उत्कृष्ट थ्युं एटले पहेलां
जघन्य तो हतुं–एम तेमां आवी जाय छे. चोथा गुणस्थानथी ज अतीन्द्रिय आनंद ने
अतीन्द्रिय ज्ञाननो अंश शरू थई गयो छे, मोक्षमार्ग शरू थई गयो छे. सम्यकत्वरूपी
बीज ऊगी ते पूर्णिमा होगी ही होगी. अल्पकाळमां केवळज्ञान थवाना कोलकरार
सम्यग्द्रष्टिने थई गया छे.
समस्त बंधभावोथी आत्माने जुदो करवो छे, तो तेनुं साधन बंधभाव केम होय?
शुभविकल्प पण बंधभाव छे, ते भेदज्ञाननुं साधन नथी. अशुद्धता तो शुद्धतानुं साधन
थाय नहि. शुद्धजीवस्वरूप तरफ ज्ञान ढळ्युं त्यां सर्व बंधभावोथी ते छूटुं पड्युं. –आवुं
भेदज्ञान ते मोक्षनुं कारण छे, आनंदना वेदन सहित आवुं ज्ञान प्रगट्युं त्यारे मोक्षनुं
उद्घाटन थयुं भेदज्ञानरूपी करवतना निरंतर अभ्यासथी एटले के स्वानुभवनो निरंतर
अभ्यास करवाथी बंधने छेदीने आत्मा मुक्त थाय छे. –ते मंगळरूप विजयवंत छे.
प्रवचन पछी श्रुतपंचमी निमित्ते श्रुतपूजन पण भाईश्री वृजलालभाईना नवा