Atmadharma magazine - Ank 297
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: ३८ : आत्मधर्म : अषाड : २४९४ :
बालविभागना हजारो सभ्यो अमने साधर्मीकुटुंब समान भासे छे.
(ले : कनकबाळा रतिलाल जैन : नं.१९७४ जोरावरनगर)
(उत्तमकक्षाना लेखोमां आ लेखने स्थान मळ्‌युं छे.)
आत्मधर्मना बालविभाग द्वारा हजारो बाळकोमां नानपणथी जे धर्मसंस्कारनां
बी रोपाय छे ते आगळ वधीने मोटा वृक्षनी जेम फालशे ने सम्यग्दर्शनादि मधुरा फळ
आपशे. –आ उत्तम भावना बालविभागना सभ्यपत्रकमां (आंबाना झाड द्वारा)
प्रदर्शित करी छे.
बालविभागनी सरळ शैलि अमारा हृदयमां धर्मना संस्कार द्रढ करे छे....ने
धर्ममां उत्साहथी रस लेवा प्रेरे छे. हजारोनी संख्यामां बालविभागनां सभ्यो ते बधाय
अमने साधर्मी –कुटुंब समान भासे छे, केमके ‘साचुं सगपण साधर्मीनुं’. धर्मनी
साधनामां बधा साधर्मीओए नम्रपणे एकबीजाने टेको ने प्रोत्साहन आपवुं जोईए.
बालविभागनी टोच उपर लख्युं छे के ‘अमे जिनवरनां सन्तान’ –एटले
आपणे जिनवरदेवनी आराधनामां ने आज्ञामां रहेनारा, अने जिनवरना मार्गे
चालनारा बंधुओ छीए. आवी उच्च भावनाने बालविभाग पोषे छे.
बालविभागे नाना बाळको उपर चमत्कारीक असर करीने एम समजाव्युं छे के
जीवनमां धर्म जेवुं बीजुं कांई नथी. एटले ज्ञान–वैराग्यनी भावना अने तत्त्वज्ञाननो
प्रेम जागे छे. तेमां आवती रसप्रद प्रश्नोत्तरी, टूचकडा काव्यो ने रमुजी शैलीना उखाणा
अमने आनंद साथे ज्ञान आपे छे. आत्मार्थीता, वात्सल्य ने देव–गुरु–धर्मनी सेवाना
अद्भुत संस्कार अमने बालविभाग द्वारा मळे छे...ते अमारा जीवनने नवो वळांक
आपे छे अने कोलेजना अभ्यास करतां पण धार्मिक अभ्यासने वधु महत्त्वनो समजीने
अमे तेना रसल्हाणनुं आस्वादन करीए छीए. टूंकामां बालविभागने अमे धर्मनुं एक
पवित्र झरणुं मानीए छीए. अने दिनोदिन तेनो विकास थाय एवी अंतरथी भावना
भावीए छीए.
–जयजिनेन्द्र
आ अंकमां छठ्ठा पाने–
मनुष्यगतिमां सम्यग्द्रष्टि करतां मिथ्याद्रष्टि संख्यातगुणा छे एम छपायुं छे तेने
बदले असंख्यातगुणा छे एम वांचवुं. केमके सम्मूर्छन मनुष्यो सहित असंख्याता जीवो
मनुष्यगतिमां छे.

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: अषाड : २४९४ : आत्मधर्म : ३९ :
गुरुदेवना चरणोमां मारा जीवनना पचीस वर्ष : संपादकीय :
अनुसंधान टाईटल पृ (२) थी
ट्रेईन तो मने मुकीने चाली गई. मने आवा संतना चरणथी दूर लई जवानुं काम
करवानुं टे्रईनने नहि गम्युं होय एटले मने संतना शरणमां ज मुकीने ते तो चाली गई.
बस, आ ट्रेईननुं चूकी जवुं ए मारा जीवनपलटानी घडी!
पाछो रखडतो–रखडतो हुं गुरुदेवना शरणमां आव्यो. अने गुरुदेवना जुना लखायेला
प्रवचनोनी नकल (प्रेसकोपी) करवाना कार्य माटे संस्थाए मारी पसंदगी करी. आ रीते सौथी
पहेलवहेलुं समयसारना प्रवचनो लखवानुं (प्रेसकोपी करवानुं) सुकार्य मने मळ्‌युं.
आ अरसामां पू.गुरुदेवना हंमेशना प्रवचनो पू. बेनश्री–बेन बंने बेनो
झीलीने लखता हता.
गुरुदेवना प्रवचन लखतां मने आवडे के नहि–तेनी मने तो हजी खबर पण न
हती, परंतु पू. बेनश्री–बेनने कोण जाणे क्यांथी खबर पडी गई–ते एक दिवसे
तेओश्रीए मने आज्ञारूप सूचना करी के तमे गुरुदेवनुं व्याख्यान लखतां शीखो!
आवडवाना कारणे नहि परंतु पू. बेनश्री–बेननां वचनो द्वारा मळेला अतिशय
उल्लासने कारणे, में प्रवचन लखवा शरू कर्या... ने तेमनी प्रेरणाना ज प्रतापे त्रणेक
महिनानी प्रेकटीस थतां प्रवचन लखवामां हुं उत्तीर्ण थयो. शरूआतमां एक प्रवचनना
१२ पानां लखायेल, पछी अनुक्रमे १६ थया अने पछी सरेराश २० पानां जेटलुं
लखाण थतुं. वधारेमां वधारे झडपे एकवखत २४ पानानुं लखाण थयुं हतुं. पछी तो
लेखनकार्य सहज जेवुं बनी गयुं. जेम जेम लेखन थतुं गयुं तेम तेम गुरुदेवना भावो
पण मारा मनमां घूंटाता गया....ने मारा आत्मामां तेना संस्कार पडता गया. पू.
गुरुदेवनो नीकट सहवास अणसमजणपणे पण मने खूब ज गमतो...ने गुरुदेव
अमारा जेवा नानकडा बाळकोने उल्लास आपीने आनंदित करता. पू. बेनश्री–बेननां
दर्शन पण आ बाळकने कोई अकल्पित प्रेरणाओ जगाडीने आत्महितमां प्रेरता हता.
आम एक तरफ गुरुदेवना प्रवचनोनुं लेखन थतुं गयुं, बीजी तरफ समजवानी
जिज्ञासा पण वधती गई, त्यां त्रीजी तरफथी आ ‘आत्मधर्म’ मासिकनी शरूआत थई.
अढीसो ग्राहक थाय तो घणा–एवी धारणाथी शरू थयेल आ मासिक आजे गुजराती–
हिंदी मळीने चार हजार जेटला ग्राहको धरावे छे. आत्मधर्मनो पहेलो अंक सं.२००० ना
मागशर सुद बीजे प्रसिद्ध थयो हतो. मु. श्री रामजीभाईनी दोरवणीमां तेनुं लेखन–
संपादन करवानुं पण मारा ज भाग्यमां आव्युं. आजे पचीस वर्षमां २प००० जेटला
पानां आत्मधर्म माटे आ हाथे लखाई चूक्यां छे, ने बीजा पण २प००० जेटला पानानुं
साहित्य गुरुदेवना प्रवचनमांथी लखाई गयुं छे. आ रीते पचास हजार पानां जेटलुं

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: ४० : आत्मधर्म : अषाड : २४९४ :
उच्च कोटिनुं अध्यात्मसाहित्य लखायुं छे; ने ते द्वारा जिनवाणी प्रत्येनी परमभक्ति
पुष्ट थई छे.
सं.२००० मां गुरुदेवना राजकोटथी पुन: सोनगढना विहार वखते ज्यारे हुं
थोडा दिवस मोरबी गयो त्यारे कुटुंबीजनोने लाग्युं के आ छोकरो धर्मनी लाईनमां
उतरी जशे, एटले आखा कुटुंबना वडीलोए भेगा थईने आ मार्ग छोडीने मुंबई जवा
खूब दबाण करवा मांडयुं, परंतु– आ बाळकना हृदयमां तो पू. गुरुदेवना चरणनो
प्रभाव अंकित थई चूक्यो हतो, एटले ज्यारे मुंबई जवा माटे वडीलोए दबाण करीने
पूछ्युं त्यारे मुखने बदले आंखोए ज अश्रुनी धारा वहावीने जवाब आप्यो. जो के
आंखनी अश्रुधाराए मुंबई जवानी वातने धोई नांखी हती पण वडीलोनुं दबाण तो
ऊलटुं वधवा लाग्युं, छेवटे तेमना सकंजामांथी छूटवा ‘रामजीभाई पासेथी रजा लईने
आवुं’ एम कहीने हुं त्यांथी भागी आव्यो, ने सीधो गुरुदेव पासे लाठी शहेर पहोंच्यो.
–ए दिवस हतो. सं. २००० ना चैत्र सुद तेरस !
आम अनेक खेंचताण वच्चेथी पसार थईने गुरुदेवना पवित्र चरणकमळमां
आ बाळक वस्यो ने सोनगढमां गुरुदेवनी मीठीमधुरी अमीछायामां जीवनघडतर थतुं
गयुं. अहा, गुरुदेवना उपकारनी शी वात!
आजे तो ए वातने पचीस वर्ष–पा सैको–थयो...आ पचीस वर्षमां तो
गुरुदेवना चरणोमां केवा केवा उत्तम प्रसंगो बन्या...ने गुरुदेवना श्रीमुखथी केवी केवी
उत्तम प्रसादीओ आशीर्वादपूर्वक प्राप्त थई....एनां हजारो संभारणा आजे आत्माने
ऊंडा संशोधनमां लई जाय छे...ने आवा संतोना पवित्रजीवन प्रत्ये परम अर्पणता
प्रगटावे छे.
जीवनमां गुरुदेवे आ वात तो रगडी रगडीने घूंटावी छे के, जो आत्मार्थ साधवो
ज छे तो जीवननी कोई परिस्थिति आपणने रोकी शकवानी नथी. आत्मार्थ साधवानो
ज्यां अंदरमां द्रढ निर्णय छे ने साची लगन छे त्यां जगतसंबंधी अवनवा अनेक
प्रसंगोमांथी पसार थवा छतां ए निर्णय के ए लगनीने जराय ढीलीपोची थवा न देवी,
ने संतोना चरणमां तेनुं बळ वधारता रहेवुं, परम वैभवथी भरपूर जे पोतानुं शुद्ध
स्वरूप तेनो महिमा करीकरीने तेमां अंतर्मुख थवुं ते आपणुं कर्तव्य छे. जीवनमां वधु ने
वधु वैराग्यथी, वधुने वधु आत्मरसथी गुरुचरणमां पोतानुं हित साधवानुं एक ज लक्ष
राखीने क्षणक्षण–पळपळ आत्मसाधनामां प्रयत्नशील रहेवुं.
अहो, जीवनमां रत्नचिंतामणि समान जे सन्तरत्नो मने मळ्‌या छे तेमना
अनंत उपकारना स्मरणपूर्वक नमस्कार करुं छुं.
(२४९४ अषाड सुद बीज : सोनगढ)
–ब्र. हरिलाल जैन

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आत्मशक्तिओनी अद्भुतता उपर पू. गुरुदेवना भावभीनां प्रवचन चाली

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फोन नं.३४ “आत्मधर्म” Regd. No. G. 182
मोतीनन्दन के दिये हुए अच्छे मोती
o रागने जाणती वखते पण ज्ञान तो ज्ञान ज छे, ज्ञान कांई राग थई गयुं नथी,
ज्ञान पोते जो राग थई जाय तो रागने जाणे कोण?
o शरीर ते मोक्षनुं कारण छे एम माननार शरीरनुं ममत्व कदी छोडशे नहि एटले
शरीररहित मोक्षदशाने पामशे नहि.... फरी–फरीने शरीर ज धारण करशे.
o महावीरे जे ज्ञानथी आ जगतने जोयुं छे ते ज्ञान सर्वे आत्मामां छे...एटले के
दरेक आत्मा सर्वज्ञस्वभावथी परिपूर्ण छे. तेनी प्रतीत करनारने ते प्रगटे छे.
o अंतरमां चेतनाना थनगणाटपूर्वक जे जीवने आत्मलगनी लागी छे ते जीव सतत
प्रयत्न वडे सम्यग्दर्शन प्रगट करशे ज.
o ज्ञानीओए शिखामण आपवामां कांई बाकी नथी राख्युं...हवे तो जीवे पोते
जागवानुं छे. जीव जागे तो एक क्षणमां आत्मानुं काम करी ल्ये एम छे. जाग रे
जीव जाग!
o ज्ञानी पुरुषोनो मार्ग त्यारे ज उपास्यो कहेवाय छे ज्यारे पोते स्वानुभव करीने
ते मार्गे चाले. जात–अनुभव वडे ज ज्ञानीनो मार्ग देखाय छे.
o रागना अभावमां आत्मानो अभाव नथी थई जतो, केमके राग ते
आत्मस्वभाव नथी.
ज्ञान न होय तो आत्मा न होय–केमके ज्ञान ते आत्मस्वभाव छे.
माटे ज्ञान ने राग जुदा छे: एक आत्मस्वभाव छे, ने बीजो आत्मस्वभाव नथी.
श्री दिगंबर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती प्रकाशक अने
मुद्रक : मगनलाल जैन, अजित मुद्रणालय : सोनगढ (प्रत: २प००)