: १६ : आत्मधर्म : अषाड : २४९४ :
तत्क्षण एक समयमां ते आत्मा अने बंधने जुदा करी नांखे छे. चेतना ज्यां अंतरमां
एकाग्र थई के ते ज समये ते बंधभावोथी जुदा शुद्धआत्माने अनुभवे छे. आवुं
भेदज्ञान निपुण पुरुषो करे छे; निपुण पुरुषो एटले आत्मानुभवमां प्रवीण जीवो; –
पछी ते पुरुष हो के स्त्री हो, स्वर्गनो देव हो के नरकनो नारकी हो; आत्मानो अनुभव
करवामां प्रवीण छे ते जीवो निपुण छे, मोक्षने साधवानी कळा तेने आवडे छे...एने
संसारनो किनारो नजीक आवी गयो छे. आवा भेदज्ञाननिपुण जीवो प्रज्ञाछीणी वडे
बंधथी भिन्न शुद्ध आत्माने साधे छे. आवुं भेदज्ञान जीवने आनंद उपजावे छे.
भेदज्ञान थतांवेंत ज आनंदरूप शुद्धआत्मा अनुभवमां आवे छे, ने बंधभावो
शुद्धस्वरूपथी बहार जुदा रही जाय छे. आ मोक्षमार्ग छे.
वाह! सन्तो आवुं भेदज्ञान करावीने कहे छे के भाई! तुं अंतरमां आवुं भेदज्ञान कर.
आ भेदज्ञान तने महा आनंद उपजावशे ने मोक्ष पमाडशे. भेदज्ञान माटेनो आ अवसर छे.
अनादिना बंधनथी छूटीने सुखी थवा माटेनो आ वखत छे. तुं आ वखतने चूकीश मा.
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गुरुदेव परम वात्सल्यभरी प्रेरणाथी कहे छे के हे भाई! अत्यारे आत्मज्ञान
माटेनो आ अवसर छे....तुं आ वात लक्षमां तो ले. मांड आवा टाणां मळ्या छे...तेमां
करवानुं तो एक आ ज छे. अंदरमां जरा धीरो थई, बहारना कार्योनो रस छोडी,
विचार करे तो तने जणाशे के आत्मानो स्वभाव अने राग बंने एक थईने रहेवा
योग्य नथी पण जुदा पडवा योग्य छे. बंनेनो स्वभाव जुदो छे तेथी जुदा पडी जाय छे.
भाई! समय–समय करतां काळ तो चाल्यो ज जाय छे; तेमां जो तुं तारा स्वभाव–
सन्मुख न थयो तो तेें शुं कर्युं ? जे करवा जेवुं कार्य छे ते तो आ ज छे. गमे तेटला
प्रयत्न वडे पण विकारथी भिन्न चेतननो अनुभव करवो–ते ज करवानुं छे.
तारी चेतना रागने चेतवामां (अनुभववामां रोकाय छे तेने बदले चेतना
अंदरमां वळी शुद्धआत्माने चेते–अनुभवे के तरत ज आत्मा अने बंधनी भिन्नतानो
अनुभव थाय छे. –एक समयमां ज आवो उपयोगपलटो थई जाय छे.
दुनियाना जीवो दुनियाना बाह्यकार्योमां पोतपोतानुं डहापण ने प्रवीणता देखाडे
छे....तो हे भाई! तुं तारा आत्माना अनुभवमां प्रवीण था....तेमां उद्यमी था, तारी
चेतनाने रागथी जुदी करीने शुद्ध स्वरूपमां पेसाड...ते क्षणे ज तने परम आनंद थशे.
भेदज्ञानमां निपुण जीवो आनंदसहित पोताना शुद्धआत्माने अनुभवे छे. –आवो
अनुभव ते मोक्षमार्ग छे, ते करवा जेवुं काम छे.
अहा! सावधान थईने आत्माना विचारनो उद्यम करे तेमां तो ऊंघ ऊडी जाय
तेवुं छे. जेने सम्यग्दर्शन प्रगट करवुं छे ते तो आत्मा अने बंधनी भिन्नताना