Atmadharma magazine - Ank 297
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: अषाड : २४९४ : आत्मधर्म : १५ :
ने ज्ञानना कोई अंशने बंधभावमां भेळवती नथी. आवी भगवती ज्ञानचेतना ते
मोक्षनुं साधन छे.
जोके रागादि अशुद्धभावो जीवनी पर्यायमां परिणमे छे–ज्यां जीव छे त्यां ज
रागादि छे, तेथी तेमनाथी भिन्न एवा शुद्धजीवनो अनुभव सामान्य जीवोने कठण छे–
घणो सूक्ष्म छे, तोपण निपुण पुरुषो अंतरनी सूक्ष्म ज्ञानचेतनावडे स्वभाव अने
विभाव वच्चेनो भेद जाणीने तेमनी भिन्नतानो अनुभव करे छे; केमके बंने वच्चे
लक्षणभेदनी तीराड छे. स्थूळज्ञानथी अज्ञानीने ते तीराड नथी देखाती पण ज्ञाननी
अंतर एकाग्रतावडे ते बंने वच्चेनी सांध जाणीने, ज्ञान पोताना स्वभावमां एकाग्र
थाय छे. एकाग्र थतां ज बंने स्पष्ट भिन्न जुदा अनुभवमां आवे छे; ज्ञाननो अनुभव
थयो ते अनुभवमां रागनी सर्वथा नास्ति छे. प्रथम आवी भिन्नता अनुभवतां
सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान थाय छे; पछी सकळ रागादिनो तथा कर्मनो क्षय थवाथी
बंधने सर्वथा छेदीने साक्षात् मोक्षदशा प्रगट थाय छे. आ रीते प्रज्ञा छीणीवडे बंधनने
छेदीने आत्मा मुक्त थाय छे. माटे प्रज्ञारूप ज्ञानचेतना ते मोक्षनो पंथ छे.
अंतरमां ज्ञान अने राग वच्चेनी सांध पकडवी ते माटे उपयोगमां घणी सूक्ष्मता
जोईए. ईन्द्रियो ने मन बंनेथी छूटीने अतीन्द्रिय उपयोग वडे रागथी जुदो आत्मा
अनुभवाय छे. आमां अंर्तमुख उपयोगनो घणो प्रयत्न छे. देह–मन–वाणी तथा
जडकर्म–ते तो जीवथी एकक्षेत्रे होवा छतां भिन्न प्रदेशवाळा छे, रूपी छे, जड छे, ते
नवा आवे छे ने जाय छे–एटले ते तो जीवथी भिन्न छे–एवी प्रतीति विचार वडे
ऊपजे छे. पण अंदरमां जीवनी पर्याय साथे एक प्रदेशे रहेला जे रागादिभावो,
तेमनाथी भिन्न शुद्धजीवनो अनुभव कठण छे, –कठण होवा छतां सूक्ष्म प्रज्ञा वडे तेमनी
वच्चेना स्वभाव भेदने जाणीने भिन्नतानो अनुभव थई शके छे. कठण छे–पण
अशकय नथी, थई शके तेवुं छे. ने आवी भिन्नतानो अनुभव करावनारी भगवती
प्रज्ञा ते ज मोक्षसाधन छे. अनंता जीवो एवो अनुभव करीने मोक्ष पाम्या छे.
प्रज्ञाछीणी वडे विचार करतां अंतरमां एम प्रतीत थाय छे के राग जुदो ने हुं
जुदो; राग वगरनो आत्मलाभ संभवे छे; रागना अभावमां आत्मानो अभाव थई
जतो नथी, रागना अभावे पण आत्मा पोताना चेतनस्वरूपे जीवे छे. माटे
चेतनास्वरूप ज जीव छे, रागस्वरूप नथी.–आवुं अंदरनुं भेदज्ञान अत्यंत कठण होवा
छतां अंदरना तीव्र प्रयत्नवडे थई शके छे. रागना काळे ज तेनाथी भिन्न शुद्धजीवनो
अनुभव ज्ञानचेतना वडे जरूर थाय छे. ज्ञानचेतना अति सूक्ष्म छे, चक्रवर्तीनी
तलवारनी तीखी धारनी जेम एक झाटके ते प्रज्ञाछीणी ज्ञान अने रागना बे कटका करी
नांखे छे. आवुं भेदज्ञान करतां प्रज्ञाछीणीने केटली वार लागे? –तो कहे छे के