Atmadharma magazine - Ank 297
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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रजतजयंतिनुं वर्ष
२९७
तुं मोक्षपंथे आव
श्रीगुरु शिखामण आपे छे के हे भव्य! आत्माना
अनुभव माटे सावधान थाजे....शूरवीर थाजे....जगतनी
प्रतिकूळता देखीने कायर थईश नहि....प्रतिकूळता सामे न जोईश,
शुद्धआत्माना आनंद सामे जोजे. शूरवीर थईने–उद्यमी थईने
आनंदनो अनुभव करजे. ‘हरिनो मारग छे शूरानो....’ ते
प्रतिकूळतामां के पुण्यनी मीठासमां कयांय अटकता नथी; एने
एक पोताना आत्मार्थनुं ज काम छे. ते भेदज्ञानवडे आत्माने
बंधनथी सर्वथा प्रकारे जुदो अनुभवे छे. आवो अनुभव
करवानो आ अवसर छे–भाई! तेमां शांतिथी तारी चेतनाने
अंतरमां एकाग्र करीने त्रिकाळी चैतन्यप्रवाहरूप आत्मामां मग्न
कर...ने रागादि समस्त बंधभावोने चेतनथी जुदा अज्ञानरूप
जाण. आम सर्व प्रकारे भेदज्ञान करीने तारा एकरूप
शुद्धआत्माने साध. मोक्षने साधवानो आ अवसर छे.
अहो, वीतरागना मारगडा...जगतथी जुदा छे. जगतना
भाग्य छे के संतोए आवो मारग प्रसिद्ध कर्यो छे. आवो मारग
पामीने हे जीव! भेदज्ञान वडे शुद्धआत्माने अनुभवमां लईने तुं
मोक्षपंथे आव.
तंत्री : जगजीवन बावचंद दोशी – संपादक : ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. २४९४ अषाड (लवाजम : चार रूपिया) वर्ष २प : अंक ९