Atmadharma magazine - Ank 297
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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गुरुदेवना चरणोमां
मारा जीवना पचीस वर्ष
आ अषाड सुद बीजे ज्यारे पू.
गुरुदेवनी पवित्र छायामां आव्याने मने
पचीस वर्ष पूरा थाय छे. त्यारे गुरुदेवना
परम उपकारथी भरेला संस्मरणो घणी
भकितथी जागृत थाय छे...ने पवित्र संतोना
चरणोमां वीतेला मधुरताभर्या पचीस वर्ष
हृदयने पुलकित करे छे.
परमपूज्य कहानगुरुदेवना पवित्र चरणकमळमां हुं सं. १९९९ ना अषाड सुद
बीजना दिवसे आव्यो; अव्यक्तपणे पण ते मारा जीवननो अपूर्व मंगल दिवस हतो.
आ अबुध बाळकने ते वखते तो कल्पना पण न हती के हवेनुं आखुंय जीवन आ
संतना चरणमां ज रहेवानुं महाभाग्य मळशे. ते वखते तो मारा वडील भाईजीनी साथे
मात्र चार दिवस माटे राजकोट आवेलो, अने मारा भाईजीनी प्रेरणाथी एक
डायरीबुकमां में गुरुदेवना प्रवचनमांथी थोडीक नोंध करी. ते वखते प्रवचनमां
समयसारनी छठ्ठी गाथानो छठ्ठो दिवस चालतो हतो...ने में पहेलुं वाकय आ लख्युं हतुं
: ‘द्रव्यद्रष्टिथी द्रव्य जे छे ते ज छे.’
त्यारबाद चार दिवस पूरा थया ने हुं तो राजकोटथी पाछो मोरबी जवा माटे
रवाना थयो. परंतु, जेनुं हित थवानुं होय तेने आवा संतना चरणथी कुदरत केम दूर
थवा द्ये! अजाण्यो अजाण्यो रस्तो शोधतो हुं स्टेशन तरफ जई रह्यो हतो त्यां तो
अचानक वरसाद आववा लाग्यो –जाणे के ए वरसादरूपी मधुरी वाणीद्वारा आकाश
मने कहेतुं होय के ‘तुं अहींथी जा मा...अहीं ज तारुं हित छे.’ छतां हुं ते आकाशवाणी
न समज्यो ने स्टेशन तरफ आगळ पहोंच्यो. स्टेशननी नजीक पहोंचता ज जोयुं के
ट्रेईन तो आ चाली जाय!!
(–अनुसंधान पानुं ३९)