Atmadharma magazine - Ank 297
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: अषाड : २४९४ : आत्मधर्म : १ :
वार्षिक लवाजम वीर सं. २४९४
चार रूपिया अषाड
* वर्ष २प : अंक ९ *
अवसर आव्यो आत्मज्ञानो
गुरुदेव परम वात्सल्यभरी प्रेरणाथी कहे छे के हे
भाई! अत्यारे आत्मज्ञान माटेनो आ अवसर छे...तुं
आ वात लक्षमां तो ले. मांड आवा टाणां मळ्‌या
छे...तेमां करवानुं तो एक आ ज छे. अंदरमां जरा
धीरो थई, बहारना कार्योनो रस छोडी, विचार कर तो
तने जणाशे के आत्मानो स्वभाव अने राग बंने एक
थईने रहेवा योग्य नथी पण जुदा पडवा योग्य छे.
बंनेनो स्वभाव जुदो छे तेथी जुदा पडी जाय छे.
भाई! समय–समय करतां काळ तो चाल्यो ज जाय छे;
तेमां जो तुं तारा स्वभाव–सन्मुख न थयो तो तें शुं
कर्युं? जे करवा जेवुं कार्य छे ते तो आ ज छे. गमे
तेटला प्रयत्नवडे पण विकारथी भिन्न चेतननो
अनुभव करवो–ते ज करवानुं छे.
(प्रज्ञाछीणीना प्रवचनमांथी : पूरुं प्रवचन अंदर वांचो)