: २ : आत्मधर्म : अषाड : २४९४ :
मोक्षमार्ग साधवानी रीत
भगवाने पराश्रयरूप व्यवहार बधोय छोडाव्यो छे
शुद्ध वस्तुरूप निश्चयनुं एकनुं ज आलंबन कराव्युं छे
सर्वज्ञना मार्गमां वीतरागी सन्तोए कई रीते मोक्षमार्ग
साध्यो? तेनी विधि बतावतां आचार्यदेव स्वानुभव सहित कहे छे के
पराश्रित एवा समस्त व्यवहारने छोडीने अने स्वाश्रित एवा सम्यक्
निश्चयरूप शुद्ध आत्मामां एकमां ज निष्कंप रहीने वीतरागमार्गी
संतोए मोक्षमार्ग साध्यो छे, अमे पण ए ज विधिथी मोक्षमार्ग साधी
रह्या छीए...ने जगत पण ए ज एक विधिथी मोक्षमार्गने साधो.
(समयसार कळश १७३ उपरना प्रवचनमांथी)
मोक्षमार्गमां विचरता सन्तो शुं करे छे? ते वात छे. मुनि हो के सम्यग्द्रष्टि
गृहस्थ हो –ते बधा सन्त छे, मोक्षमार्गी छे. असंख्यात समकिती ने करोडो मुनि ते
बधा अंदरमां कई रीते मोक्षमार्गने साधे छे ते अहीं बताव्युं छे. आमां जैनशासननो
नीचोड आवी जाय छे.
प्रथम तो, सम्यग्द्रष्टि जीवराशि एटले के सम्यग्द्रष्टि जीवोनो समूह महिमावंत
एवा पोताना शुद्ध चैतन्यस्वरूपमां लीन थईने परम सुखने अनुभवे छे; शुद्धस्वरूपमां
एकाग्रता वडे ज सुख छे; कोईपण पराश्रयभावमां सुख नथी. पराश्रितभाव ते तो
दुःख छे; माटे बधोय पराश्रयभाव छोडवानो भगवाननो उपदेश छे, ने एकला शुद्ध–