Atmadharma magazine - Ank 297
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: अषाड : २४९४ : आत्मधर्म : ३ :
स्वरूपना अवलंबननो भगवाननो उपदेश छे. आनाथी विरुद्ध माने, व्यवहारना
आश्रयथी लाभ माने, तो तेणे भगवानना स्वालंबी उपदेशने जाण्यो नथी.
भगवाननो उपदेश तो स्वालंबननो एटले के शुद्धात्माना आश्रयनो छे; एम करे तेणे
ज भगवानना उपदेशने यथार्थ झील्यो कहेवाय.
अहो! सर्वज्ञ भगवाननो आवो उत्तम उपदेश सांभळीने सम्यग्द्रष्टिजीवो
शुद्धात्मामां स्थिर थईने सुखने केम न अनुभवे? सम्यग्द्रष्टि तो शुद्धात्मानो आश्रय
करीने आनंदने अनुभवे छे. –एटले सम्यग्द्रष्टि थवानी पण आ ज रीते छे के
व्यवहारनो आश्रय छोडीने शुद्धआत्मानो आश्रय करवो, –ए पण आमां आवी गयुं.
भाई! तारे जन्म–मरणनां दुःखोनो अंत लाववो होय ने परम सुखनो अनुभव करवो
होय तो परथी अत्यंत भिन्न आत्माने जाणीने तेमां ज स्थिरता कर.
भगवाननो यथार्थ उपदेश सांभळतां पोताना शुद्धस्वरूपनो परम महिमा आवे
छे ने रागनो महिमा रहेतो नथी. एटले धर्मीजीव रागादि साथे एकताबुद्धि सर्वथा
छोडीने, पोताना शुद्धस्वरूपमां ज एकाग्र थईने तेना अनुभवथी सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्र प्रगट करे छे. आ रीते शुद्धात्माना आश्रये मोक्षमार्ग छे माटे तेनो आश्रय
करवा जेवो छे; ने जेटला पराश्रित व्यवहारभावो छे ते बधा मोक्षमार्ग नथी पण
बंधमार्ग छे माटे ते बधानो आश्रय छोडवा जेवो छे. अहो, आवो स्पष्ट मार्ग
भगवाने दिव्यध्वनि द्वारा समवसरणमां बताव्यो ने गणधर वगेरे सन्तोए ते झील्यो,
ने जगतना जीवोने उपदेश्यो. आवा मार्गनो निश्चय तो करो!
स्वाश्रित मोक्षमार्गना साचा निश्चय वडे पराश्रयबुद्धि छूटे छे ने परिणतिनुं
वलण अंतर्मुख ढळे छे. सर्वे अरिहंतोए शुद्धआत्माना आश्रये ज मोक्षमार्ग कह्यो छे,
रागना आश्रये के शरीरना आश्रये मोक्षमार्ग कह्यो नथी. मोक्ष कोण पामे? के जे
निश्चयरूप शुद्धात्मानो आश्रय करे ते; ‘‘निश्चयनयाश्रित मुनिवरो प्राप्ति करे
निर्वाणनी.’’
अहीं तो कहे छे के : आवा शुद्धआत्माना आश्रयनो अने व्यवहारना आश्रयना
त्यागनो उपदेश सांभळतांवेंत धर्मना कामी जीवो पोताना शुद्धस्वरूपने झडपथी आलंबे
छे, जोरथी पोताना स्वभावनुं अवलंबन करे छे...शुद्ध ज्ञानघन स्वभावना महिमामां
पोताना आत्माने एकाग्र करे छे...निष्कंपपणे आक्रमीने शुद्धस्वरूपमां पहोंची जाय छे.