Atmadharma magazine - Ank 297
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : अषाड : २४९४ :
धर्मी शुद्धस्वरूपमां आक्रमण करे छे–झडपथी तेमां प्रवेशीने तेनो अनुभव करे छे;
परभावोमां रोकाता नथी पण तेनाथी भिन्न थईने शुद्धस्वरूपने पहोंची वळे छे–
अनुभवमां ल्ये छे. सम्यक् निश्चयने एकने ज अनुभवीने शुद्धज्ञानघनना महिमामां
ज्ञान स्थिर थयुं–ते ज शरण छे, ते ज शांति छे, ते ज मोक्षमार्ग साधवानी रीत छे.
‘एक’ एटले बीजा बधायथी निरपेक्ष, जेमां निमित्तनी, रागनी के भेदनी
अपेक्षा नथी एवा शुद्धज्ञानघन निर्विकल्प एक स्वरूपनो ज आश्रय (अनुभव)
करवाथी मोक्षमार्ग सधाय छे. आ सिवाय बीजाना आश्रये मोक्षमार्ग माने तो तेने
मार्गनी विपरीतता छे, एटले के मिथ्यात्व छे. मोक्षमार्गना जे रत्नत्रय छे ते अन्य
द्रव्योथी अत्यंत निरपेक्ष छे ने एक पोताना शुद्धस्वरूपनुं ज तेने अवलंबन छे
एकम्
एव एटले सम्यक् निश्चयने एकने ज अनुभववो–एम कहीने बीजा सघळाय व्यवहार
भावोनो आश्रय जिनभगवाने छोडाव्यो छे.
रागथी तो निवृत्त थवानुं (पाछा वळवानुं) भगवाने कह्युं छे; जो रागमां
एकताबुद्धि करे तो तेनाथी जीव केम पाछो वळे? अने जे जीव रागने मोक्षनुं साधन
माने ते तेमां एकताबुद्धि कर्या विना रहे नहि. अहीं समजावे छे के हे भाई! मोक्षनो
मार्ग तो एक शुद्ध आत्मवस्तुना ज आश्रये छे, अन्य कोईना आश्रये मोक्षमार्ग नथी.
माटे बधाय परनो आश्रय छोडीने सन्तो मात्र एक निर्विकल्प चैतन्य वस्तुने ज
अनुभवे छे. तेनो ज आश्रय करे छे. जेमां रागादि समस्त पराश्रयभावोनो अभाव छे
एवी निर्विकल्प वस्तु, तेना अनुभव वडे सम्यकत्वादि थाय छे ने मिथ्यात्व छूटे छे.
जेटला बहिर्मुखभाव ते मोक्षमार्ग नहि. अंतर्मुख शुद्धआत्माना आश्रयरूप
वीतरागभाव ते ज मोक्षमार्ग छे. मोक्षमार्गरूप आत्मअनुभव, तेमां बीजा कोईनी
मदद–अपेक्षा नथी. विकल्पनीये अपेक्षा नथी. आवो परम निरपेक्ष मोक्षमार्ग छे.
जेम स्व–परनी एकताबुद्धिरूप मिथ्याभाव बंधनुं कारण होवाथी भगवाने ते
मिथ्याभाव छोडाव्यो छे, तेम शुभाशुभ जेटला पराश्रय भावो छे ते बधाय पण
बंधनुं ज कारण होवाथी भगवाने ते पराश्रयभावो छोडाव्या छे; पराश्रित एवो
बधोय व्यवहार भगवाने छोडाव्यो छे, एटले के तेनो आश्रय छोडीने सम्यक्
निश्चयरूप एक शुद्धआत्मानो ज निष्कंप आश्रय कराव्यो छे; तेना ज आश्रये
मोक्षमार्ग छे. जेटलो शुद्धात्मानो आश्रय छे तेटलो ज मोक्षमार्ग छे; जेटलो
पराश्रयभाव छे तेटलो बंधभाव छे. ज्ञानीने ते पराश्रयभावमां एकत्वबुद्धि छूटी गई
छे तेथी तेनाथी ते छूटो छे–मुक्त छे.