Atmadharma magazine - Ank 297
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 8 of 45

background image
: अषाड : २४९४ : आत्मधर्म : ५ :
सम्यक्निश्चयमां लीन, ने व्यवहारथी विमुक्त, एवा सम्यग्द्रष्टि सन्तो मोक्षने
साधे छे. शुद्धआत्माने देखवो–अनुभववो तेने ज जैन शासन कह्युं छे. व्यवहारनो
आश्रय करीने अशुद्धतानो अनुभव करे तेने जैनशासन नथी कह्युं, तेने धर्म नथी कह्यो.
शुद्धवस्तुना अनुभव वगर धर्म केवो? हजी तो शुभराग ते जैनधर्म छे एम माने ते
रागनुं सेवन छोडीने शुद्धवस्तुनुं सेवन क्यांथी करशे? रागनुं सेवन, रागथी कंई पण
लाभबुद्धि, ते तो मिथ्याबुद्धि छे. मोक्षमार्ग तो भगवाने शुद्धात्माना सेवनथी ज कह्यो छे.
अंदरना गुणगुणीभेद संबंधी कोई सूक्ष्म विकल्प, ते विकल्प अंदरना
अनुभवमां जवा माटे कांईक तो सहायकारी थशे! –तो कहे छे के ना; सघळाय
विकल्परूप व्यवहारनो आश्रय छोड, ने शुद्धआत्मानो आश्रय कर त्यारे ज तने
अंतरमां आनंदनो अनुभव थशे ने त्यारे ज मोक्षमार्ग शरू थशे. आ कळशना रचनार
अमृतचंद्राचार्यदेवे ज पुरुषार्थसिद्धिउपाय शास्त्र रच्युं छे; तेमां पण कहे छे के–
‘एवमयं
कर्मकृतैः भावैः असमाहितो अपि युक्त इव प्रतिभाति बालिशानां प्रतिभासः स खलु
भवबीजम् ।’
(गा.१४) आ चैतन्यस्वरूप शुद्धआत्मा छे ते शरीरादिक अने रागादिक
एवा कर्मकृत भावोथी असंयुक्त छे–भिन्न छे, छतां बालिश एटले के अज्ञानी जीवोने ते
रागरूप ने शरीररूप होय एवो प्रतिभास थाय छे; अज्ञानीओनो ते प्रतिभास खरेखर
भवनुं बीज छे.
जुओ, आ भवनुं बीज! तेनी सामे मोक्षनुं बीज शुं ? –के ‘निश्चयनयाश्रित
मुनिवरो प्राप्ति करे निर्वाणनी.’ निश्चयनयवडे देहथी ने रागथी भिन्न एवा पोताना
शुद्धआत्माने अनुभवमां लेवो ते मोक्षनुं बीज छे. तेमां क्यांय रागनी अपेक्षा नथी,
रागथी तो ते असंयुक्त छे. शुद्धआत्मानो अनुभव रागने स्पर्शतो नथी.
रागथी लाभ मानशे ते जीव राग वगरना शुद्धआत्माने केम अनुभवशे? जे
सम्यक् स्वभावमां विकल्प छे ज नहि एने अनुभवमां –श्रद्धामां लेतां कोई विकल्पमां
लाभबुद्धि रहेती नथी. विकल्पनी परवा वगरनो खुद आत्मा पोते पोताने
स्वानुभूतिथी अनुभवे छे, –आवो मोक्षमार्ग भगवाने कह्यो छे. राग–विकल्प के भेदरूप
व्यवहारनो जेटलो आश्रय छे तेटलो तो अशुद्ध भावबंध छे, ते मोक्षनुं कारण थई
शकतो नथी.
अहो, आवा स्वाधीन मोक्षमार्गने कोण न सेवे! सम्यक् निश्चय एवा
निजस्वरूपना महिमामां कोण लीन न थाय? ने रागमां–व्यवहारमां कोण लीन रहे?
सन्तो एटले सम्यग्द्रष्टि साधकजीवो विकल्पथी भिन्न थईने, व्यवहारनो आश्रय
छोडीने, एक