मोक्षमार्गने साधवानी रीत छे.
एकताबुद्धि सम्यग्द्रष्टिने रहेती नथी. माटे ‘सम्यग्द्रष्टिने व्यवहार नथी’ –एम कह्युं; ते
एक सम्यक् निश्चयरूप शुद्धस्वरूपमां ज तन्मय–लीन छे. आवी अंतरंगद्रष्टि धर्मात्माने
होय छे. धर्मात्मानी आवी अंतरदशाने व्यवहारनी रुचिवाळो ओळखी शके नहि. आ
तो वीतरागी शास्त्रोनो अपूर्व नीचोड छे. शुद्धस्वरूपनो अनुभव करवो ने व्यवहारनो
आश्रय छोडवो ते सर्वे वीतरागीशास्त्रोनुं तात्पर्य छे एटले ते जैनशासननो सार छे ने
ते मोक्षमार्ग छे. आ रीते ज मोक्षमार्ग सधाय छे.
जुओ, वीतरागमार्गी सन्तोए मोक्षमार्ग कई रीते साध्यो तेनी आ वात छे.
परमारथनो पंथ.’ सम्यक् निश्चयरूप जे पोतानो शुद्धस्वभाव, तेनुं अवलंबन करतां
बीजा बधानुं (भेदनुं–रागनुं–परनुं) अवलंबन छूटी जाय छे. पराश्रयभावमां रागनी
उत्पत्ति छे, तेथी जेटला पराश्रितभावो छे तेमनो मोक्षमार्गमां निषेध छे. शुभराग–
विकल्प होय पण धर्मी तेने मोक्षमार्गरूप नथी जाणता. तेने बंधभाव तरीके जाणीने हेय
समजे छे. जगतमां जे कोई सम्यग्द्रष्टि–जीवराशि छे ते आ प्रकारे ज मोक्षने साधे छे.