Atmadharma magazine - Ank 297
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म : अषाड : २४९४ :
सम्यक् निश्चयरूप निजस्वरूपना महिमामां लीन थाय छे–तेने अनुभवे छे. –आ
मोक्षमार्गने साधवानी रीत छे.
जेणे शुद्धआत्माने अनुभवमां लईने मिथ्यात्वभाव छोड्यो एणे शुद्धस्वरूपथी
विरुद्ध एवा समस्त व्यवहारभाव छूटी गया एटले के ते बधाय व्यवहारमांथी
एकत्वबुद्धि तेने छूटी गई छे. विकल्पो ते वीतरागस्वरूपथी विपरीत छे; तेमां क्यांय
एकताबुद्धि सम्यग्द्रष्टिने रहेती नथी. माटे ‘सम्यग्द्रष्टिने व्यवहार नथी’ –एम कह्युं; ते
एक सम्यक् निश्चयरूप शुद्धस्वरूपमां ज तन्मय–लीन छे. आवी अंतरंगद्रष्टि धर्मात्माने
होय छे. धर्मात्मानी आवी अंतरदशाने व्यवहारनी रुचिवाळो ओळखी शके नहि. आ
तो वीतरागी शास्त्रोनो अपूर्व नीचोड छे. शुद्धस्वरूपनो अनुभव करवो ने व्यवहारनो
आश्रय छोडवो ते सर्वे वीतरागीशास्त्रोनुं तात्पर्य छे एटले ते जैनशासननो सार छे ने
ते मोक्षमार्ग छे. आ रीते ज मोक्षमार्ग सधाय छे.

जुओ, वीतरागमार्गी सन्तोए मोक्षमार्ग कई रीते साध्यो तेनी आ वात छे.
त्रणेकाळे सर्वे जीवोने माटे आ एक ज मोक्षनी रीत छे. –‘एक होय त्रणकाळमां
परमारथनो पंथ.’ सम्यक् निश्चयरूप जे पोतानो शुद्धस्वभाव, तेनुं अवलंबन करतां
बीजा बधानुं (भेदनुं–रागनुं–परनुं) अवलंबन छूटी जाय छे. पराश्रयभावमां रागनी
उत्पत्ति छे, तेथी जेटला पराश्रितभावो छे तेमनो मोक्षमार्गमां निषेध छे. शुभराग–
विकल्प होय पण धर्मी तेने मोक्षमार्गरूप नथी जाणता. तेने बंधभाव तरीके जाणीने हेय
समजे छे. जगतमां जे कोई सम्यग्द्रष्टि–जीवराशि छे ते आ प्रकारे ज मोक्षने साधे छे.
सम्यग्द्रष्टि – जीवराशि
संसारमां सम्यग्द्रष्टि–जीवराशि असंख्यात छे.
नरकमां सम्यग्द्रष्टि करतां मिथ्याद्रष्टि असंख्यगुणा छे.
स्वर्गमां सम्यग्द्रष्टि करतां मिथ्याद्रष्टि असंख्यातगुणा छे.
मनुष्योमां सम्यग्द्रष्टि करतां मिथ्याद्रष्टि असंख्यातगुणा छे.
तिर्यंचमां सम्यग्द्रष्टि करतां मिथ्याद्रष्टि अनंतगुणा छे.
नरकमां सम्यग्द्रष्टि असंख्यात छे.
स्वर्गमां सम्यग्द्रष्टि असंख्यात छे.