: अषाड : २४९४ : आत्मधर्म : ७ :
मनुष्यमां सम्यग्द्रष्टि संख्यात छे.
तिर्यंचमां सम्यग्द्रष्टि असंख्यात छे.
सिद्धमां तो अनंतजीवो बधाय सम्यग्द्रष्टि छे, मिथ्याद्रष्टि त्यां छे ज नहि.
हवे आ बधा सम्यग्द्रष्टि जीवोनो समूह शुं करे छे? के शुद्धस्वरूपने अवलंबीने
आनंदनो उपभोग करे छे, ने समस्त व्यवहारनुं अवलंबन छोडे छे. शार्दूलसिंहनी जेम
निजानंदनी मस्तीमां विचरे छे.
अत्यारथी मांडीने भविष्यनो अनंतानंतकाळ आत्मिक सुखनो ज अनुभव कर्या
करे– एवुं महा कार्य शुं व्यवहारना अवलंबने थतुं हशे? ना; शुद्धनिश्चयरूप
ज्ञानानंदस्वरूपना अवलंबने ज अनंतकाळनुं महान सुख प्रगटे छे. माटे सन्तो,
सम्यग्द्रष्टि धर्मात्माओ; अतीन्द्रिय सुखना अभिलाषीओ, परम संतोषथी
निजमहिमाथी भरपूर शुद्धस्वरूपमां ज एकाग्रता करे छे. सम्यक्निश्चयरूप निजस्वरूप
सिवाय बीजानो महिमा धर्मीने आवतो नथी. भाई! तेरा पंथ बहारमें नहि, तेरा पंथ
रागमें नहि, तेरा पंथ तारा शुद्धस्वरूपमां ज छे. आवा शुद्धस्वरूपने जेओ अवलंबे छे
तेओ ज भगवानना पंथमां छे. रागथी धर्म माने तेओ भगवानना पंथमां नथी.
शुद्धस्वरूपना वेदनमां रागना वेदननो अभाव छे. जेनो अभाव छे तेना
अवलंबने शुद्धस्वरूपनी प्राप्ति केम थाय? न ज थाय. माटे धर्मात्मा जीवो रागनुं
अवलंबन सर्वथा छोडीने शुद्धस्वरूपना निज महिमामां ज ज्ञानने एकाग्र करे छे.
सत्य वस्तु एटले शुद्ध वस्तु निर्विकल्प छे; कोई विकल्प वडे ते अनुभवमां
आवी शकती नथी, विकल्प तेमां प्रवेशी शकतो नथी. धर्मी जीवो आवी शुद्धवस्तुने
आक्रमे छे एटले के पुरुषार्थ वडे तेमां पहोंची वळे छे, –अंतर्मुख थईने तेमां प्रवेशे छे.
बीजा बधाने छोडे छे ने अंतरमां सम्यक्निश्चयने एकने ज ग्रहण करे छे, –आ ज
मोक्षमार्ग छे, ने आज धर्मात्मानुं चिह्न छे.
शुद्धस्वरूपने अनुभवमां लेतां, ते शुद्धस्वरूपथी विपरीत जे कोई परभावो छे ते
बधा छूटी जाय छे. निश्चयनो आश्रय करतां व्यवहारनो आश्रय छूटी जाय छे. सर्वज्ञना
पंथना केडायती एवा सन्तो आ प्रकारे एक निश्चयना आश्रये मोक्षमार्गने साधे छे.