तो तारो अनंतकाळ संसारमां वीत्यो. रागादिभावोने पोताना मानीने अनंतकाळ तें
दुःखमां ज गुमाव्यो. एनाथी छूटवा ने अनंतकाळनुं सुख पामवा माटे मोक्षनो आ महा
पंथ वीतरागी सन्तोए बताव्यो छे तेनुं सेवन कर. स्वभावना सेवनथी जे शुद्धभावो
प्रगट्या तेमां व्यवहारना बंधभाव जरापण छे ज नहि, ते अबंधभाव छे, अबंधभाव
कहो के मोक्षमार्ग कहो.
छे. ने व्यवहारना आश्रये कदी मोक्ष साधी शकातो नथी. माटे सम्यग्द्रष्टिने सघळाय
व्यवहारनो आश्रय छूटी गयो छे; एने जे शुद्धभाव प्रगट्यो छे तेमां निश्चयनो ज
एकनो आश्रय छे, व्यवहारनो आश्रय तेमांथी छूटी गयो छे...आवी परिणति वडे ज
मोक्षमार्ग सधाय छे. –मोक्षमार्ग साधवानी आ रीत छे.
ज्ञानधारानुं फळ सादिअनंत परम आनंदनी प्राप्ति छे; कर्मधारा ते दुःखरूप छे. आम
बंने धारानी अत्यंत भिन्नतानुं स्वरूप पोताना भावमां स्पष्ट भासवुं जोईए. बंनेने
एकबीजानां भेळवी द्ये, बंधभावना एक अंशनेय मोक्षमार्ग माने–तो तेने मोक्षना
कारणने जाण्युं ज नथी, मोक्षमार्ग तेणे जोयो ज नथी, एटले ते तो बंधनमां ज वर्ते छे.
अहीं ते बंधनथी छूटवानी ने मोक्षमार्ग साधवानी रीत वीतरागी सन्तोए बतावी छे.
देहनो तो संयोग क्षणमां छूटी जशे, –भाई! आवा जीवनमां मोक्षमार्गने
साध...आत्माना स्वरूपनो निर्णय कर...ने अरिहंतदेवना वीतराग मार्गमां आव.
शुद्धआत्माना आश्रय वगर वीतरागमार्गमां अवातुं नथी. वीतरागमार्गमां सन्तोनी
शैली कोई अजब छे! एमना अंदरना भावो अपूर्व गंभीर छे. समयसार कोई अपूर्व
मांगळिक पळोमां जगतना महाभाग्ये रचाई गयुं छे...कुंदकुंदाचार्यदेव स्वानुभवमां
झूलता झूलता अंदर कलम बोळी बोळीने पोन्नूर पर्वत उपर ज्यारे आ समयसार
लखता हशे (ते वखतनी भावभीनी अद्भुत चेष्टा बतावीने गुरुदेव कहे छे के–)
अहो! वीतरागी सन्तोए न्याल कर्या छे!