Atmadharma magazine - Ank 297
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म : अषाड : २४९४ :
त्त्र्
(सर्वे जिज्ञासुओनो प्रिय विभाग)
प्रश्न:– आत्मा अरूपी छे, तो ते कई रीते देखाय? (प्रेमकुमार जैन, नं ३१९)
उत्तर:– अतीन्द्रियज्ञानमां अरूपीने पण जाणवानी ताकात छे. अरूपी वस्तु आंखथी न
जणाय, परन्तु अतीन्द्रियज्ञानथी तो जरूर तेने जाणी शकाय.
स. नं.१०६ (मुंबई) : श्रद्धा अने दर्शनउपयोग वच्चेना भेद संबंधी प्रश्न कोई
जाणकार साथे रूबरू चर्चवाथी समजाशे. आ विभागने माटे ए चर्चा सूक्ष्म पडे.
स. नं.२४६ (गोंडल) भूतकाळ करतां भविष्यकाळनी पर्यायो अनंत गुणी छे.
ते बाबत तमे पूछयुं; ते संबंधी सूक्ष्म चर्चा विस्तारथी तो अहीं नहीं चर्चीए,
पण टूंकामां सिद्धांतनी एक गणतरी आपीए छीए–
जीवनी संख्या– भूतकाळनां समयो करतां अनंतगणी.
जीवनी संख्या– भविष्यकाळना समयो करतां अनंतमां भागे.
आ उपरथी, जो तमे गणीतमां प्रवीण हशो तो तरत ख्यालमां आवी जशे के
भूतकाळ करतां भविष्यकाळ अनंत गणो छे; एटले भूतकाळ करतां
भविष्यकाळनी अनंतगणी पर्याय थवानुं सामर्थ्य वस्तुमां छे.
प्रश्न:– महावीर भगवाने लग्न कर्या हता के नहीं? (हसमुख जैन, जामनगर)
उत्तर:– ना.
प्रश्न:– अनंतवार आपणे मनुष्य–अवतार पाम्या त्यारे सत्पुरुष अने सदुपदेश मळ्‌या
हशे के नहीं?
उत्तर:– भाई, जगतमां तो सत्पुरुष सदाय छे, पण ज्यारे पोते तेमने ओळखे अने
तेमना उपदेशने समजीने आत्मज्ञान करे, त्यारे पोताने सत्पुरुष अने सदुपदेश
मळ्‌या कहेवाय. जेम उत्तम भोजन तो सामे पडयुं होय पण पोते खाय नहीं तो
भूख मटे नहि; पोते खाय तो भोजन मळ्‌युं कहेवाय, तेम सत्पुरुषने पोते