: अषाड : २४९४ : आत्मधर्म : १९ :
न ओळखे तो पोताने लाभ थाय नहि. पोते ओळखीने लाभ ल्ये तो खरेखर
सत्पुरुष मळ्या कहेवाय.
प्रश्न:– आपणे सूती वखते वीतरागदेवनुं (पंच परमेष्ठीनुं) नाम शा माटे लईए छीए?
उत्तर:– केमके पोताने तेमना जेवा थवुं छे, वीतराग थवानी पोतानी भावना छे एटले
सूता ऊंघमां पण ए ज भावनानुं रटण रह्या करे, तेथी ण मोककार मंत्र
बोलीने सूतां ने ऊठतां पंच परमेष्ठीने याद करीए छीए. बंधुओ, सूतां ने
ऊठतां पंच परमेष्ठी भगवानने याद करवानी टेव पाडजो.
राजकोटथी नवा सभ्यो लखे छे – ‘‘आत्मधर्मनो बालविभाग दर महिने घणा
रसपूर्वक वांचीए छीए, अने जीव तथा शरीरनी भिन्नता विषे वधु ने वधु
ज्ञान मेळववा उत्सुक छीए. आत्मधर्मना संपादकीय लेखमां, जैन पाठशाळा शरू
करवा माटे आपनो विचार घणो ज आवकारदायक छे, अने आ अंगे अत्रेना
वडीलोनुं अमे ध्यान दोरेल छे. जैनपाठशाळा खरेखर अमारा जेवा अल्पज्ञ
बाळकोमां धर्मसंस्कारोनुं सींचन करशे अने ज्ञान खीलवशे. बालविभागद्वारा
नानपणथी बाळकोमां आत्मज्ञाननी लगनी लगाडवा बदल अभिनंदन!
–प्रकाशचंद्र तथा धीरीशकुमार.
प्रश्न:– केवा पाप करवाथी जीवने नरकमां जवुं पडे? ने जीवने संसारमां केम रखडवुं
पडे छे? (पंकज जैन नं.१८०)
उत्तर:– भाईश्री, आत्मानुं अज्ञान ए ज सौथी मोटी भूल छे, ने तेने लीधे जीव
संसारनी चारे गतिमां रखडे छे. नरकमां जवुं पडे एवा पाप अज्ञानीने ज
बंधाय छे. माटे नरकनी खरी बीक होय तो अज्ञान छोडीने आत्मज्ञान करवुं
जोईए.
केवा पाप करवाथी नरकमां जवुं पडे–एम तमे पूछयुं, एना करतां तमे
एम केम न पूछयुं के ‘शुं करवाथी मोक्षमां जवाय? ’ –जो तमे एम पूछयुं होत
तो तेनो उत्तर एम मळत के ‘सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी उपासना करवाथी
मोक्ष पमाय छे.
प्रश्न:– निगोदना दुःखोना वर्णनमां कह्युं छे के एक श्वासोश्वासमां १८ वार जन्ममरण
करे छे : तो जन्म–मरण करे तेमां दुःख शुं? (स. न.१८०)