Atmadharma magazine - Ank 297
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : अषाड : २४९४ :
उत्तर:– भाई, एक श्वासोश्वासमां १८ वखत जन्ममरण थाय एवो संयोग तो एवा
जीवने ज होय छे के जेने अंदर तीव्र मोह होय...ए तीव्र मोहनुं ज तेने तीव्र
दुःख छे, ने ए दुःख समजाववा संयोगथी कथन करवामां आव्युं छे–केमके
सामान्य जीवोने ए रीते ज दुःखनो ख्याल आवे छे. बाकी तो सिद्धोनुं सुख जेम
ईन्द्रियगम्य नथी, तेम एकेन्द्रिय जीवोनुं महादुःख पण ईन्द्रियगम्य नथी.
भावमरणनी तीव्रता होय त्यां ज द्रव्यमरणनी एवी तीव्रता (१८ वार
जन्ममरण) होय छे; जेने भावमरण नथी एवा निर्मोही जीवोने द्रव्यमरण पण
होतुं नथी. मोक्ष थाय तेने मरण नथी कहेवातुं. एटले जन्म–मरण वगेरेनां जे
तीव्र दुःखो वर्णव्या छे त्यां तेनी साथेना तीव्र भावमरणनुं ज ए दुःख छे. –
एम समजवुं.
प्रश्न:– कया भगवान कैलासगिरी परथी मोक्ष पाम्या? (हसमुख जैन, प्रांतीज)
उत्तर:– ऋषभदेव भगवान. (नमो ऋषभ कैलास पहाडं)
प्रश्न:– (१) भरत अने ऐरवतक्षेत्रमां २४–२४ तीर्थंकरो छे ने विदेहमां २० तीर्थंकरो
छे–एनुं शुं कारण? (अकलंक जैन, नं ४४४ साबली)
उत्तर:– भाईश्री, आपणा भरतमां के ऐरवत क्षेत्रमां ज्यारे २४ तीर्थंकरो थाय छे
एटला वखतमां विदेहक्षेत्रमां तो वीस नहि परंतु असंख्याता तीर्थंकरो थाय छे.
अहीं ऋषभदेवथी मांडीने महावीर तीर्थंकर थया तेनी वच्चेना काळमां विदेहमां
असंख्याता सीमंधर भगवंतो थई गया. विदेहमां जे वीस तीर्थंकरो कहेवामां
आवे छे ते तो ‘शाश्वत’ एटले के एटला तीर्थंकर भगवंतो तो पांच विदेहमां
सदाय होय ज. तेमां वच्चे भंग न पडे. जेम भरतक्षेत्रमां तो अत्यारे तीर्थंकर
नथी, पण विदेहमां तीर्थंकर न होय एवुं कदी न बने. कोईवार पांचविदेहमां
एक साथे १६० तीर्थंकरो पण वर्तता होय छे. आ बाबतनो अभ्यास करशो तो
विशेष घणुं जाणवानुं मळशे.
प्रश्न:– (२) वीस तीर्थंकर भगवंतोना चिह्न शुं छे?
उत्तर:– भरतक्षेत्रना पहेला तीर्थंकर ऋषभदेवनुं जे चिह्न, ते ज विदेहना पहेला तीर्थंकर
सीमंधरनाथनुं चिह्न, त्यारपछी अनुक्रमे चिह्न आ प्रमाणे छे– (२) हाथी