Atmadharma magazine - Ank 298
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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अरे हो वीरा! रामजीसुं कहियो युं बात,
लोक निंदातें हमको छांडी, धरम न छोडो गात......अरे०
पाप कमाये सो हम पाये, तुम सुखी रहो दिनरात,
‘द्यानत’ सीता थिर मन कीनो मंत्र जपे अवदात.......अरे०
श्री दिगंबर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती प्रकाशक अने
मुद्रक : मगनलाल जैन, अजित मुद्रणालय : सोनगढ (प्रत : २प००)