Atmadharma magazine - Ank 299
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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रजतजयंतिनुं वर्ष
२९९
धन्य आपणी भारतभूमि!
आधुनिक दुनियाना बधा देशो करतां आपणा
भारतदेशनुं गौरव महान छे. जगतमां सर्वेश्रेष्ठ एवा
चोवीसेय तीर्थंकर भगवंतोने जन्म देवानुं लोकोत्तर गौरव
आपणा भारतदेशने ज प्राप्त छे.
बीजा देशो बाह्य संपत्तिमां के बाह्य विद्याओमां कदाच भले
आगळ वधेला गणाता होय, पण केवळज्ञानरूप वीतराग
विज्ञाननो वारसो, अने सम्यकत्वादि अध्यात्म–संपत्ति, तो आपणा
भारतदेश पासे ज छे...आपणे एना वारसदार छीए. परदेश
वसतो कोईपण भारतीय गौरवपूर्वक कही शके के तीर्थंकर भगवंतो
मारा देशमां जन्म्या हता; ने अमे एना वारसदार छीए.
२४ तीर्थंकर भगवंतो मोक्ष पण आपणा भारतदेशमां ज
पाम्या; २४ तीर्थंकरोनी सिद्धभूमि थवानुं गौरव पण भारतने
ज प्राप्त छे.
आपणे आवा महान भारतदेशना संतान छीए–ए
आपणुं गौरव छे; –पण ए गौरवनी सफळता त्यारे के ज्यारे
आपणे पण ए तीर्थंकरोना जीवनआदर्शने आपणा जीवनमां
झीलीए...ने तेमना पंथे जईए.
तंत्री : जगजीवन बावचंद दोशी * संपादक : ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. २४९४ भादरवो (लवाजम : चार रूपिया) वर्ष २प : अंक ११