: ३६ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९४
अमृतचंद्राचार्यदेवे आटलो तो महान उपोद्घात लखीने कुंदकुदाचार्यदेवनी
ओळखाण आपी, ने बहुमान कर्युं. पछी पांच गाथा द्वारा पंचपरमेष्ठी भगवंतोने
भावभीना नमस्कार करतां श्री कुंदकुंदाचार्यदेव कहे छे के हुं शुद्धोपयोगरूप साक्षात्
मोक्षमार्गने अंगीकार करुं छुं
‘हुं’ तीर्थनायक वर्द्धमानदेवने नमस्कार करुं छुं; ‘हुं’ केवो छुं? के
स्वसंवेदनप्रत्यक्ष दर्शनज्ञानसामान्यस्वरूप हुं छुं. आवो हुं; आराध्य–आराधक बंने
भावोने मारामां ज समावीने पंचपरमेष्ठीने अभेद नमस्कार करुं छुं. पंचपरमेष्ठी
भगवंतो जेवा वीतराग छे, तेमने नमस्कार करतां हुं पण तेवो वीतराग थई जाउं छुं,
एटले हुं वंदन करनार ने पंचपरमेष्ठी मारे वंदन करवा लायक – एवो विकल्प छूटी
जाय छे....ने शुद्धपयोग थाय छे.
पंचपरमेष्ठीने नमस्कार करनार पोते पोतने स्वसंवेदनप्रत्यक्ष अनुभवे छे;
स्वसंवेदनप्रत्यक्ष कहेतां तेमां रागादिनो अभाव आवी ज गयो. स्वसंवेदन वगर
पंचपरमेष्ठीने परमार्थ नमस्कार थता नथी. जुओ, आ वीतरागी सन्तनी दशा! आ
मोक्षनो स्वयंवर मंडायो छे तेनुं मंगळाचरण थाय छे–आजे मंगळ दिवस छे.
‘आ....हुं’ एम पोते पोताने साक्षात् नजरमां लईने (स्वसंवेदन वडे प्रत्यक्ष
करीने) पंचपरमेष्ठीने नमस्कार करे छे. हुं पोते वर्तमान शुद्धोपयोगरूप थईने अभेद
नमस्कार करुं छुं–एम पंचमकाळना मुनि निःशंक कहे छे. वंदन करनार केवा होय ते पण
आमां आव्युं. पंचपरमेष्ठीने वंदन करतां विकल्प तोडीने हुं पोतामां ज नमुं छुं. पोते
पोतामां नमतां पंचपरमेष्ठीने नमस्कार स्वयमेव थई जाय छे; –भाव्य–भावकनो भेद
त्यां रहेतो नथी. जुओ, आ अपूर्व मंगळिक! आवो भाव पोतामां जेणे प्रगट कर्यो
तेना उपर पंच परमेष्ठीभगवंतोनी प्रसन्नता थई आजे चंपाबेननो जन्म दिवस छे ने
महा मंगळपूर्वक आ शास्त्र शरू थाय छे.
अहो, मुक्तिना स्वयंवरमंडपमां परमनिर्ग्रंथतानी दीक्षाना आनंदमय प्रसंगे
कुंदकुंदाचार्य पंचपरमेष्ठी भगवंतोने बोलावे छे–तेनुं भावभीनुं विवेचन सांभळतां
श्रोताजनो वारंवार हर्षविभोर बनी जता हता...जाणे सिद्धभगवंतो पधार्या
होय....जाणे सीमंधरादि तीर्थंकर भगवंतो पधार्या होय–एवो हर्ष छवाई जतो हतो.
पंचपरमेष्ठीनो साक्षात्कार करावीने गुरुदेव भावथी कहेता के अहो, भगवंतो! आपने
मारा ज्ञानमां बिराजमान कर्या छे एटले हुं पण आपनी पंक्तिमां बेसनार छुं. अनंत
अरिहंतो–सिद्धो, ने जगतना पंचपरमेष्ठी भगवंतोनी नात भेगी करीने मोक्षनो मोटो
उत्सव करीए छीए...तेमां हे पंचपरमेष्ठी भगवंतो! आ मुक्तिना मंडपमां आप
पधारो...आपना पधारवाथी अमारी शोभामां वृद्धि थशे...आम मोक्षना मांडवा रोपीने
महा मंगळपूर्वक प्रवचनसार–शास्त्र शरू कर्युं छे.. तेमां आचार्यदेवे अरिहंतोनो मार्ग
प्रसिद्ध कर्यो छे, ने ए रीते परमागम द्वारा जगतने परम आनंदनी भेट आपी छे.