Atmadharma magazine - Ank 299
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४९४ आत्मधर्म : ३५ :
हे पंचपरमेष्ठी भगवंतो ! पधारो मारा मुक्तिमंडपे...
श्रावणवद बीजना मंगलदिने प्रवचनसारनी नवी आवृत्तिनुं
प्रकाशन थयुं....ते प्रसंगे उल्लासकारी मंगलरूपे पू. गुरुदेवे
प्रवचनसारनी पांच मंगल गाथाओ उपर प्रवचन कर्युं हतुं....अहा!
गुरुदेव जाणे के पंचपरमेष्ठी भगवंतोनो साक्षात्कार करावता हता.
पंचपरमेष्ठीथी जुदापणुं राखीने नहि पण पंचपरमेष्ठीने साथे भळीने
नमस्कार कई रीते कराय–ते गुरुदेव समजावता हता...ए वखतना
रणकार आत्मप्रदेशोमां हजी पण झणझणे छे.
आ प्रवचनसार ते भगवाननी वाणीनो सार छे.
प्रारंभमां परम आनंदने याद करीने कहे के परमआनंदनरूपी सुधारसना
पिपासु भव्य जीवोना हितने माटे प्रवचनसारनी टीका रचाय छे. आत्मानो निर्विकल्प
अतीन्द्रियआनंद तेनी जेने तरस लागी छे एवा पिपासु जीवोने तृप्ति करवा माटे आ
शास्त्र रचायुं छे.
शास्त्रकार कुंदकुंदाचार्यदेव केवा छे ? तेमनी ओळखाण करीने अमृतचंद्राचार्यदेव
कहे छे के ते आसन्न भव्य महात्माने संसारसमुद्रनो किनारो निकट छे; तेमनी वाणीना
वाच्च द्वारा हजार वर्षे पण निःशंक निर्णय थई गयो के अहो, संसारसमुद्रनो किनारो
तेमने नजीक आवी गयो छे; सातिशय विवेकज्योत तेमने प्रगट थई छे. जुओ,
अनुभवीने बीजा अनुभवीनी दशा ओळखाई जाय छे. सातिशय एवुं भेदज्ञान
थयुं छे के जे वृद्धिगत थईने अप्रतिहतपणे केवळज्ञान ज लेशे. जेम सातिशय सातमुं
गुणस्थान तेने कहेवाय के जे ऊंचे ज चडे एटले के श्रेणी मांडे. तेम कुंदकुंद स्वामीने
एवी सातिशय ज्ञानज्योत प्रगटी छे के जे अप्रतिहतपणे केवळज्ञान लेेशे. तेमने
अनेकान्तविद्याना बळे समस्त एकान्तवादनी विद्यानो आग्रह अस्त थई गयो छे; तथा
समस्त पक्षनो परिग्रह छूटी गयो छे एटले अत्यंत मध्यस्थ थई गया छे. मध्यपणे
वस्तु–स्वरूप जेम छे तेम कह्युं छे. तेमणे सर्व पुरुषार्थमां श्रेष्ठ अने आत्माना उत्तम
हितरूप एवी मोक्षलक्ष्मीने उपादेय करी छे, केवी छे मोक्षलक्ष्मी?–के भगवान
पंचपरमेष्ठीना प्रसादथी जेनी प्राप्ति थाय छे; जे परमार्थ सत्य छे ने अक्षय छे. आवी
मोक्षलक्ष्मीने उपादेयपणे नक्क्ी करीने पोते सर्व आरंभथी मोक्षमार्गनो आश्रय करे छे;
मंगळरूपे वर्तमान तीर्थना नायक श्री महावीर भगवानने अने पंचपरमेष्ठीना
भगवंतोने प्रणमन अने वंदनरूप नमस्कार करीने पोते सर्वआरंभथी मोक्षमार्गनो
आश्रय करे छे. ने शुद्धोपयोगरूप साम्यभावनी प्राप्तिनी प्रतिज्ञा करे छे.–शरूआतनी
पांच अलौकिक मंगळगाथाओमां