वीतरागभाव छे ने ते मोक्षमार्ग छे; ईष्ट एवा मोक्षफळने ते देनारुं छे. एवा
चारित्रधर्मनुं स्वरूप सातमी गाथामां कहे छे.
मानो छो? तो कहे छे के हा; चारित्रनी क्रिया केवी होय? के पोताना शुद्धस्वरूपमां
प्रवृत्तिरूप क्रिया ते चारित्रनी क्रिया छे. आवी क्रिया वडे मोक्ष सधाय छे. मोक्षनी साधक
आवी चारित्रक्रियाने अज्ञानी ओळखतो नथी. अहो, चारित्रदशानुं आवुं
वीतरागीस्वरूप, अत्यारे तो ते सांभळवानुं पण महाभाग्ये मळे छे, तो तेवी साक्षात्
चारित्रदशाना महिमानी शी वात! आ शमरसरूप चारित्र ते भवाग्निना तापने शांत
करनार छे. चैतन्यना अतीन्द्रिय शांतरसमां ठरी गयेला मुनिवरोने चारित्रदशा होय छे.
दर्शनमोह अने चारित्रमोह बंनेनो नाश करीने, शुद्धात्मानी प्रतीत अने तेमां एकाग्रता
थाय त्यारे चारित्रदशा अने मुनिपणुं प्रगटे छे. अहा, मुनि थया ते तो परमेष्ठी थया,
जगत्पूज्य