Atmadharma magazine - Ank 300
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्मधर्म : आसो : २४९८
जुओ, आ चारित्रना ग्रहणनो उपदेश आपे छे. लोको कहे छे के तमे चारित्रने
जुओ, मोक्षने माटे केवा चारित्रनी भावना करवा जेवी छे? तेनुं स्वरूप बतावे
अरे भाई! आवी वीतरागतानी समजण तो कर. मोक्षने माटे आवी
शुभराग ते खरेखरुं चारित्र छे ज नहि; पण चारित्रना सहकारीपणे तेमां
चारित्रनो आरोप कर्यो छे; पण साचा वीतरागचारित्रने भूलीने ते रागने ज साचुं
चारित्र मानी ल्ये एने तो मिथ्यात्व छे, एटले साचुं के आरोपरूप एककेय चारित्र तेने
होतुं नथी; साचुं चारित्र होय त्यां रागमां आरोपरूप व्यवहार थाय. साचा स्वरूपनी
जेने ओळखाण नथी तेने व्यवहारनी पण खबर होती नथी. साचा पूर्वक व्यवहार होय
छे. साचा चारित्रने ओळखे नहि ने जे साचुं चारित्र नथी तेने साचुं मानी ल्ये तो
ऊंधी मान्यताने लीधे मिथ्याश्रद्धा थाय छे. आचार्यदेवे सरागचारित्रने एटले के
व्यवहार चारित्रना शुभरागने बंधनुं कारण अने कलेश कहीने स्पष्ट