Atmadharma magazine - Ank 300
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९८ आत्मधर्म : २५ :
केटली स्पष्ट वात आचार्यदेवे समजावी छे! शुभरागने स्पष्टपणे अनिष्ट फळ
शुभराग तो पोते विषमभावरूप छे, तेमां शांति नथी. मोक्षना कारणरूप
राग तो संयोगी भाव छे, परसमयप्रवृत्ति छे; ने चारित्र तो स्वभावभाव छे,
स्वसमयमां प्रवृत्तिरूप छे. अरे, साचा चारित्रनी ओळखाण पण जीवोने दुर्लभ छे.
बहारमां देहनी क्रियामां, नग्न शरीरमां के व्रतादिना शुभरागमां ज अज्ञानीए चारित्र