Atmadharma magazine - Ank 300
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म : आसो : २४९८
चारित्रधर्म
वीतरागचारित्र ज ईष्ट छे; शुभराग ईष्ट नथी
प्रवचनसारना प्रारंभमां पांच गाथा द्वारा
पंचपरमेष्ठी भगवंतोने नमस्काररूप मंगलाचरण
कर्युं .....ने शुद्धोपयोगरूप वीतरागचारित्र ते ज
साक्षात् मोक्षमार्ग छे एम बतावीने ते मोक्षमार्ग
आचार्यदेवे अंगीकार कर्यो. –एनुं भावभीनुं
प्रवचन आ अंकनी शरूआतमां आपे वांच्युं.
हवे छठ्ठी गाथामां आचार्यदेव कहे छे के वीतरागचारित्र ते ईष्ट फळवाळुं छे ते ज
सुखरूप मोक्ष देनार छे, तेथी थे उपादेय छे; अने राग तो अनिष्टफळ देनार छे, रागनुं
फळ तो बंधन अने कलेश, छे, तेथी ते हेय छे.
चारित्रने धर्म कह्यो छे, –पण कयुं चारित्र? वीतरागभावरूप चारित्र; मोह अने
राग–द्वेष वगरनुं चारित्र; ते धर्म छे, तेनुं फळ मोक्ष छे. शुभराग ते चारित्र नथी, ते तो
कषायकण छे, तेनाथी कलेश अने बंधन थाय छे; अरे आवुं स्पष्ट धर्मनुं स्वरूप, छतां
अज्ञानीओ शुभरागने अने पुण्यने धर्म माने छे. शुभरागमां के पुण्यफळमां सुख नथी–
ए वात आचार्यदेव आ प्रवचनसारमां घा प्रकारे युक्तिथी स्पष्ट समजावशे.
अहा, मोक्षमार्गी मुनिवरो तो शुद्धोपयोग वडे मोक्षने साधवा मांगे छे; वच्चे
शुभराग आवी पडे तेनी भावना नथी, ते रागना फळमां तो पुण्यबंधन थाय छे ने
भव करवो पडे छे.
जुओ, पचां पांडवमुनिवरो शत्रुंज्यगिरि उपर ध्यानमां ऊभा हता. त्यां धग
धगता लोखंडना दागीना पहेरावीने दुर्याधनना भाणेजे उपसर्ग कर्यो....त्यारे तेमांथी