Atmadharma magazine - Ank 300
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९८ आत्मधर्म : २३ :
रामने वहालो चांदो..........साधकने वहाला सिद्ध
नानकडा रामचंद्रजीना हृदयमां आकाशमांथी चांदो लईने गजवामां नांखवानुं
मन थयुं...अनुभवी दीवानजीए स्वच्छ दर्पणमां चंद्रनुं प्रतिबिंब देखाडीने रामने राजी
कर्यां....
तेम सिद्धभगवाननो परम महिमा सांभळतां मुमुक्षुने तेनी भावना जागे
छे....ने सिद्ध भगवान सामे जोईने बोलावे छे के हे सिद्ध भगवान! अहीं पधारो!
त्यारे अनुभवी–धर्मात्मा समजावे छे के भाई! तारा ज्ञानदर्पणने स्वच्छ करीने
तेमां तुं देख.... तारामां ज अंतर्मुख जो...तो सिद्धपणुं तने तारामां ज देखाशे...ने तने
परम आनंद थशे.
ए रीते स्वसन्मुखद्रष्टि करीने जोतां पोतानुं स्वरूप ज सिद्धस्वरूपे देखायुं......ने
परम प्रसन्नता थई....परम आनंद थयो.