Atmadharma magazine - Ank 300
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म : आसो : २४९८
समान शुद्ध छे–एम सिद्धपणानी हा पाडीने जे सांभळवा ऊभो तेने
साधकभाव शरू थई ज जाय,–एवा अपूर्वभावे समयसारनी शरूआत थाय छे.
आ रीते अनंत सिद्धभगवंतोने आत्मामां बोलावीने आराधकभावनी
झणझणाटी बोलावतुं अपूर्व मंगळाचरण कर्युं.
‘जय समयसार’ ‘णमो सिद्धांण’
सिद्धप्रभुजी आंगणे पधार्या....
समयसारना पहेलां ज पाठमां आचार्यदेव कहे छे के हे भव्य! तारा आत्मामां
सिद्धपणुं स्थाप; सिद्धभगवंतोने अरीसानी जेम आदर्शरूपे राखीने तारुं स्वरूप देख के
‘जेवा आ सिद्ध छे तेवो ज हुं छुं. ’ –आवा लक्षे समयसार सांभळतां तारो अद्भुत
आत्मवैभव तने तारामां देखाशे.
अहा, समयसारनी शरूआतमां ज आत्मामां सिद्धभगवंतो पधार्या छे. एक
मोटो राजा घरे आवतां पण हृदयमां हर्षनी झणझणाटी जागी जाय छे तो सिद्धभगवान
जेना अंतरमां आव्या तेना आत्मामां आराधकभावना आनंदनी झणझणाटी जागी
जाय छे.
आत्मामां आराधकभावनी झणझणाटी बोले त्यारे समजवुं के हवे
सिद्धभगवान श्रद्धामां पधार्या; ने पोते साधक थईने सिद्ध पासे चाल्यो. आनुं नाम–
‘णमो सिद्धाणं’