: आसो : २४९८ आत्मधर्म : २९ :
बाळक कहे छे माताने........
धर्मसंस्कारवाळो एक बाळक पोतानी माता पासे हृदयनी केवी भावना
व्यक्त करे छे......ने पोताने शुं होय तो मजा पडे!–ए वात कहे छे ते वात
बाळकोने गमी जाय एवी भावभीनी शैलीमां बोटादना कुमारी
अस्मिताबेन
(M. A. LL. B.) ए लखी मोकली छे.....जे थोडाक फेरफार साथे
अहीं रजु करी छे. आवी विशेष रचनाओ मोकलीने अस्मिताबेन पोताना
शिक्षणनो बाळकोने लाभ आपे एम ईच्छीए. (सं.)
मा, मळे जो जिनमंदिर.....तो..... प्रभुद्रर्शननी केवी मजा!
मा, मळे कोई मुनिराज.............सेवा करवानी केवी मजा!
मा, रहुं जो गुरुजी पास..........तत्त्व समजवानी केवी मजा!
मा, पामुं जो समकित भाव. आनंद–अनुभवनी केवी मजा!
मा, बनुं जो हुं मुनिराज.....वनजंगलमां केवी मजा!
मा, जाउं जो विदेहधाम.....प्रभुद्रर्शननी केवी मजा!
मा, मळे तीर्थंकरदेव......“कार सुणवानी केवी मजा!
मा, पामुं जो केवळज्ञान.....सिद्धपद लेवानी केवी मजा!
[अहीं “बाळक माताने कहे छे” ते भाव दर्शाव्या छे....एवी ज रीते हवे “माता
बाळकने कहेती होय” एवी एक रचनानी जरूर छे; अने ए ज प्रमाणे बे भाई
एकबीजाने कहेता होय अथवा बहेन–भाई एकबीजानी पासे उत्तम भावना व्यक्त
करता होय एवी शैलीनी रचनाओ पण उपयोगी थशे.]
[“गतांकमां छपायेल बाळकोनुं कूचगीत “छे तैयार.....छे तैयार” –ए
“जैनसन्देश” ना सम्पादकजीने खूब गमी गयुं तेथी तेमणे “जैनसन्देश” मां पण
हिंदी बाळको माटे ते छाप्युं छे. बाळकोने माटे आवा साहित्यनी खूब जरूर छे.]