Atmadharma magazine - Ank 300
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९८ आत्मधर्म : ४३ :
पत्र त्यांना उत्साही प्रतिनिधिभाईओ तरफथी मळ्‌यो छे. जे वांचतां,
वीरशासन प्रत्येनो आजना युवानोनो प्रेम अने अर्पणभाव देखीने हृदय खूब प्रसन्न
थाय छे, –धन्य छे ते युवान बाळकोने के जेओ आटला उत्साहथी तन–मन–धनथी
धर्मप्रभावनानी तमन्ना धरावे छे. गुरुदेवना जन्मोत्सव प्रसंगे “उपकार–अंजलि”
(भारतना बाळकोनो हस्तलिखित अंक) अने बालसाहित्यनुं पुस्तक प्रगट करवा पण
तेमनी भावना छे. गामेगामना बालसभ्यो ए हस्तलिखित अंक माटे विचारी रह्या छे.
तेमनी ए भावनामां वडीलोनो पण टेको मळे ने बाळको जैनशासनने शोभावे–एवी
जिनदेव प्रत्ये प्रार्थना. (अमदावादमां पचासेक जेटला नवा सभ्यो पण नोंधाया छे.)
एवो ज उत्साहभर्यो बीजो पत्र वींछीयाना प्रतिनिधि भाईओ तरफथी आव्यो
छे; त्यां पण बालसभ्योनुं संगठन अने पाठशाळा उमंगथी चालु थयेल छे; ने अंजलि–
अंक माटे पण तैयारी करे छे.
त्रीजो उत्साहभर्यो पत्र छे मुंबईथी भाईश्री भरतकुमार एच. जैननो;
मुंबईमां बालसभ्योनुं संगठन करीने घणा उत्साहथी धार्मिकप्रवृत्तिओ उपाडवा तेमनी
तीव्र उत्कंठा छे, ते माटे तेओ प्रयत्नशील पण छे. परंतु मुंबई जेवुं मोटुं शहेर, ज्यां
४प० जेटला आपणा सभ्यो छे, –त्यां एकलाथी पहोंची न शकाय, एटले तेमनी साथे
बीजा त्रणचार उत्साही सभ्योनी प्रतिनिधि तरीके जरूर छे.....जे माटे तेओ सभ्योनो
संपर्क साधी रह्या छे. ‘अंजलि–अंक’ माटे तेमज बाळकोना बीजा कार्यक्रमो माटे तेओ
विचारी रह्या छे; मुंबईना वडीलोनो पण बाळकोना उत्साहमां पूरेपूरो साथ छे...
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• तलोद (गुजरात) मां ता. २३–९–६८ थी ४–१०–६८ सुधी जैनधर्म
शिक्षण–शिबिरनुं आयोजन हतुं.... शिबिरनुं उद्घाटन माननीय प्रमुखश्री
नवनीतभाई सी. जवेरीना सुहस्ते थयुं हतुं. शिबिरमां सेंकडो जिज्ञासुओए उत्साहथी
लाभ लीधो हतो.
• ज्योतिबेन मगनलाल (Sy. Bsc.) अमदावादथी घणो उल्लास व्यक्त
करतां लखे छे के पहेलांं अमे बरमा हता, त्यां तो ‘आत्मवैभव’ जेवुं पुस्तक क्यांथी
मळे? हमणां ‘आत्मवैभव’ पुस्तक वांच्युं; वांचीने घणो घणो आनंद थाय छे. फरी
बीजीवार वांचुं छुं. ते वांचीने एम लागे छे के बस, चारेबाजुथी ज्ञानना दरवाजा उघडी
गया छे. खरेखर, गुरुदेव आपणा उपर महान उपकार करी रह्या छे. (वगेरे)