Atmadharma magazine - Ank 300
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: ४४ : आत्मधर्म : आसो : २४९८
• मोरबीमां कु. विद्याबेन जैन ८०० बाळकोनी स्कुल चलावे छे, तेमणे
बधा बाळकोने ‘एक हतुं देडकुं’ ए वार्तानी पुस्तिका वहेंची; ते संबंधमां तेओ लखे छे
के–“वार्तानी चोपडी मळतां बधा विद्यार्थीओ एकदम खुशखुश थई गया; एक ज बेठके
वांचीने पूरी करी. वांचतां दरेकना चहेरा खूब ज प्रफूल्लित हता. बाळकोने आटलुं सुंदर
बालभोग्य धार्मिक साहित्य आपवा बदल अभिनंदन! आजे रोमरोममां आनंदनी
टसरो फूटी रही छे के बाळकोने चित्रसहित आवुं सुंदर वांचन मळ्‌युं. बाळको घेर घेर ए
ज वार्ता करता हता.”
आत्मधर्म.......
(त्रीजीे सैको पूरो करे छे)
पू. गुरुदेवनी मंगलछायामां रहीने तेओश्रीना हितोपदेशने भारतमां प्रसरावतुं
आपणुं आ ‘आत्मधर्म’ –मासिक आ अंकनी साथे पचीस वर्ष पूरां करे छे, पचीस वर्ष
एटले त्रीजो–मासिकसैको समाप्त करे छे ने आवता अंकथी चोथा सैकामां प्रवेश करशे.
दरेक अंकना सरेराश ४० पानां गणीए तोपण ३०० अंकमां १२००० उपरांत पानांनुं
एकधारु उच्चकोटिनुं अध्यात्म–साहित्य आत्मधर्मे पीरस्युं छे. संसारनी झंझटोमां ते कदी
पडतुं नथी. जैनसमाजना बधा पत्रोमां आत्मधर्मनुं स्थान सौथी ऊंचुं छे. दर महिने
हिंदी–गुजराती मळीने पांचेकहजार नकल छपाय छे; एनी कुल पृष्ठ संख्या गणीए तो
(६, ००, ०००००) छ करोड जेटली थाय. आत्मधर्म जेवुं ऊंचुं छे–तेवा ज उच्चकोटिना
जिज्ञासुओनो विशाळ वाचकसमूह पण ते धरावे छे, ने एवुं ज उच्चकोटिनुं अवनवुं
अध्यात्म–साहित्य गुरुदेव हरहमेश आपी रह्या छे...आ रीते ‘आत्मधर्म’ ते पू. गुरुदेव
द्वारा थती महान प्रभावनानुं एक अंग बनी गयुं छे.
आत्मधर्मना विकास माटे संस्थाना बंधारणमां पण उच्च आदर्श स्वीकारवामां
आव्यो छे–“आत्मधर्मनो विशेष प्रचार थाय ते माटे प्रयत्न करवो, पानां वधारवा,
मासिकने बदले पाक्षिक, अठवाडिक के दैनिकपत्र करवुं–वगेरे.....” आपणी संस्थाना
बंधारणनो आ उद्देश पू. गुरुदेवना प्रतापे शीघ्र सफळ थाय ए ज भावना.
जयजिनेन्द्र