Atmadharma magazine - Ank 300
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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फोन नं. : ३४ “आत्मधर्म” Regd No. G. 182
कैसे भूलें याद आपकी...
गत साल पू. गुरुदेव संघसहित जयपुरथी सम्मेदशिखर जतां वच्चे फागण सुद
सातमना रोज बयाना (भरतपुर–राजस्थान) मां रोकायेला, अने त्यां ‘विदेहक्षेत्रके
धर्मकर्ता जीवन्तस्वामी श्री सीमंधर स्वामी’ नी पांचसो वर्षथी पण वधु प्राचीन
प्रतिमाना दर्शननथी सौने घणो आनंद थयेलो; गुरुदेवे खूब ज प्रमोदपूर्वक सीमंधरनाथ
साथेना पूर्वभवना संबंधनी केटलीक वात पण प्रसिद्ध करेली....ए बधुं केम भूलाय?
एवा यादगार बयानागाममां गुरुदेवना स्वागतनिमित्ते त्यांना भाईश्री
रूपेन्द्रकुमार जैन, विशारदे एक काव्य गायेलुं–जे अहीं आप्युं छे:
जैनधर्म का अनुपम झन्डा, भारत में फहराया है ।
निश्ययनय का तत्त्व सभी को, पूज्यपाद! बतलाया है
।।
कैसे भूलें याद आप की, तुमने हमें जगाया है
विषयभोग में मस्त पडे़ हम, तुमने ज्ञान कराया हे ।।
कुन्दकुन्द के सेवक बनकर पावन पन्थ बतलाया है
जैनधर्म के तत्त्वों को, खेल खोल समझाया है ।।
पन्थ–भेद से उपर उठकर, समताभाव सिखाया है
आत्मधर्म को धारण करके, सत्यरूप दिखलाया है ।।
कैसे भूलें याद आपकी, तुमने हमें जगाया है ।।
[भाईश्री, जो आप अमने नथी भूलता, तो अमे (सोनगढवासी) पण
आपने अने आपनी बयाना नगरीने नथी भूलता; केम के–]
कैसे भूलें याद आप की जहां सीमंधरनाथ बिराजे हैं;
‘विदेहक्षेत्र के जीवन्त स्वामी’ दर्शन कर हरषाये हैं।।
श्री दिगंबर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती प्रकाशक अने
मुद्रक : मगनलाल जैन, अजित मुद्रणालय : सोनगढ (प्रत : २प००)