* मंगल दीपोत्सवी *
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पंचपरमेष्ठीनो प्रसाद
श्रेयोमार्गस्य संसिद्धि प्रसादात् परमेष्ठीनः।
संस्मरामो वयं तेषां प्रणमामो मुहुर्मुहुः।
श्रेयमार्ग अर्थात् मोक्षमार्ग, तेनी सम्यक्प्रकारे सिद्धि,
भगवंत पंचपरमेष्ठीना प्रसादथी थाय छे; तेथी अमे वारंवार
चालो, श्रीगुरु–प्रतापे आत्मामां रत्नत्रय–
दीपक प्रगटावीने पंचपरमेष्ठी भगवंतोना पवित्र पंथे
जईए...ने एमनी साथे रहीए.
तंत्री: जगजीवन बावचंद दोशी * संपादक: ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. २४९प कारतक (लवाजम: चार रूपिया) वर्ष २६: अंक १