: कारतक : २४९प आत्मधर्म : ३१ :
पुनरावर्तनरूप परीक्षा.....
(जोईने लखवानी छूट)
जेमां आत्मधर्मना बधा ज वांचको भाग लई शके एवो एक नवो विभाग
आ पानां पर शरू थाय छे...जे सौने गमशे.
अहीं नीचे दश प्रश्नो आप्या छे. ए दशे प्रश्नोना जवाब गत मासना अंकमां
(अंक ३००मां) आवी गयेला छे तेमांथी तमारे शोधी काढवाना छे; काम तो सहेलुं
छे, पण ते माटे तमारे बे वात करवी पडशे (१) गया मासना अंको साचवी
राखवा पडशे, ने (२) ते आखो अंक ध्यानपूर्वक वांचवो पडशे. भाग लेनारने
१०० टका सफळतानी खातरी छे, केमके जोईने लखवानी छूट छे.
(१) समयसारनुं मंगलाचरण एटले सिद्धपदनी धून...ने प्रवचनसारनुं मंगलाचरण एटले...?
(२) अनेकान्तमय जिनवाणी–रथना बे पैडां! ए बंने पैडां उपर जिनवाणीनो रथ आजेय
मोक्षमार्ग तरफ दोडी रह्यो छे.–ए बे पैडां कया?
(३) सोनगढमां तो जाणे सिद्धभगवंतोनो अने पंचपरमेष्ठी भगवंतोनो मोटो मंगळ मेळो
भरायो होय!–‘आ मेळामां आव्यो ते मुमुक्षु जरूर मोक्ष पामशे’ ...एम लख्युं छे, पण साथे एक शरत
मुकी छे, ते शरत कई?
(४) ‘समयसार’ मां शब्दोनी संधि एवी रीते छूटी पाडो के तेमांथी रत्नत्रय नीकळे.
(प) गुरुदेवना हाथमां एक शास्त्र आव्युं त्यारे तेओना अंतरमांथी एवा उद्गार नीकळ्या के
‘आत्माना अशरीरी भावने दर्शावनारुं आ शास्त्र छे.’–ते शास्त्र कयुं?
(६) ‘बोलो समयसार भगवाननो...जय हो’–एम जय बोलावी,–ते कोणे? अने क््यारे?
(७) सोनगढमां अद्भुत कारखानुं छे–ते शेनुं?
(८) एक बहेने लख्युं छे के...पुस्तक वांच्युं...वांचीने जाणे एम लागे छे के बस, चारे बाजुथी
ज्ञानना दरवाजा उघडी गया छे,–ते कयुं पुस्तक?
(९) “अनंत सिद्धभगवंतोने आत्मामां बोलावीने आराधकभावनी झणझणाटी बोलावतुं
अपूर्व मंगलाचरण”–ते कई गाथामां छे?
(१०) देवगढथी सोनगढमां आव्युं छे–ते कोण?