केवुं मजानुं भाववाही छे आ चित्र! तमने गम्युं ने? चारगतिनां दुःखोथी
छूटीने मोक्षसुखनी प्राप्तिनो मार्ग बतावनारुं ‘वीतरागविज्ञान’ तो सौने गमे ज.
मात्र आ चित्र ज नहि, परंतु तेने लगतुं आखुं पुस्तक छपाई रह्युं छे....थोडा
वखतमां पूरुं थशे ने तमने भेट मळशे.–पण त्यार पहेलां तमारे आत्मधर्मना
ग्राहक थई जवुं जरूरी छे.
लवाजम चार रूपिया: आत्मधर्म कार्यालय, सोनगढ (सौराष्ट्र)