Atmadharma magazine - Ank 302
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: ३६ : A आत्मधर्म : मागशर : २४९प
जोवानुं बंध करतां जे पाप ओछुं थाय ते
तो नफामां! ]
* मुंबईथी भीखाभाई लखे छे के
बालविभागमां बाळकोने एवो रस पडे छे
के महिनो शरू थतां ज आत्मधर्मनी राह
जुए छे. एमां पीरसातुं तत्त्व घणुं सरस
अने ज्ञानमां उतारवा जेवुं होवाथी तेनां
वखाण
करीए तेटला ओछा छे.
“आत्मधर्म मळतां जाणे गुरुदेव ज मळ्‌या–
तेटलो आनंद थाय छे. दिवाळीनी प्रसादी
मळी तेथी बहु मजा आवी, भेटनी
(–खेडब्रह्मा: सभ्य नं. ४९)
बालविभागना नवा सभ्योनां नाम आवता अंकमां
आपीशुं. रखियालना सभ्यो (सभ्य नंबर सहित) पूरा
नाम सरनामा अने विगतो लखी मोकले.
विविध पत्रोद्वारा बाळकोनी उत्तम भावना व्यक्त करता उद्गारो उपरथी
ख्यालमां आवशे के आजना जमानामां बीजाने माटे दुष्कर गणाय एवा उत्तमसंस्कार
गुरुदेवना प्रतापे आपणा बाळकोमां केटली सुगमताथी रेडाय छे!
करीश.....के मरीश?
आत्महितनां कार्यमां आळसु जीव सदाय चिंतव्या करे छे के पछी
फरीश... पछी करीश... पछी करीश...परंतु ए वात भूली जाय छे के भविष्यमां
मरी जईश,–केमके मरण तो क्षणेक्षणे दोडतुं दोडतुं नजीक ने नजीक आवी रह्युं छे.
आ संबंधी श्लोक आवे छे के–
करिष्यामि करिष्यामि करिष्यामीति चिन्तया।
मरिष्यामि मरिष्यामि मरिष्यामीति विस्मृतम्।।
माटे हे भाई! ‘करीश–करीश’ एवो विलंबभाव छोडी दे, ने मरणने याद करीने
वर्तमानमां ज आत्महितमां परिणाम लगाड. आत्महितनी उत्कृष्ट लगनी होय त्यां
भविष्यनी राह जोवानो विलंब केम पालवे! ए कार्य तो अत्यारनी क्षणे ज करवानुं होय.