: मागशर : २४९प आत्मधर्म : ४१ :
वीतरागी वात
‘पुण्य पण दुःखनुं साधन छे’
–आवी वात वीतराग सिवाय
बीजुं कोण कही शके? अने
वीतरागमार्गने अनुसरनार सिवाय कोण
एने झीली शके?
प्रवचनसार गा. ७६ मां
आचार्यदेवे ए वात समजावीने, पुण्य–
पापथी पार एवुं अतीन्द्रिय सुख बताव्युं
छे. भाई! पुण्यना फळ बाह्यविषयो छे, ते
पुण्यफळ तरफ लक्ष जतां तो तने आकुळता
अने दुःख ज थाय छे. तोपछी एवा
पुण्यने सुखनुं साधन कोण कहे? ए तो
दुःखनुं साधन छे.
डर नहि,–ए पुण्यथी पार एवुं
परम अतीन्द्रिय चैतन्यसुख तारामां भर्युं
छे तेने शुद्धोपयोगवडे अनुभवमां ले.
पुण्य वगरनुं कोई परम अचिंत्यसुख तने
तारामां अनुभवाशे.
ओळखी काढो
नीचे बब्बे व्यक्तिनां नाम आप्यां
छे, तेओ एकबीजानां शुं सगा थाय ते
तमारे ओळखी काढवानुं छे:–
(१) अभयकुमार अने वारिषेण मुनि
(२)ऋषभदेवभगवान अने मरिचीकुमार
(महावीरनो जीव)
(३) चेलणाराणी अने चंदनासती
(४) त्रिशलामाता अने चंदनबाळा
(प) श्रीकृष्ण अने प्रद्युम्नकुमार
(६) नेमनाथ अने सत्यभामा
(७) बाहुबली अने ब्राह्मी–सुंदरी
(८)गौतमगणधर अने ईन्द्रभूति गणधर
(९)गौतमगणधर अने अग्निभूति गणधर
(१०) शांतिनाथभगवान अने
चक्रायुधगणधर
आ मरण चाल्युं आवे नजीक!
भले आवे, हुं तो अमरपणारूपी तलवार लईने बेठो छुं,
पछी मरणनी बीक शी? हुं तो अमर छुं–पछी
मरण कोने मारशे? मरण मने नहि मारे, पण
हुं मरणने एवुं मारीश के फरी मारी पासे आवे नहि.
अमरने मरणनी बीक शी?