: २ : आत्मधर्म मागशर : २४९प
दरेक आत्मा
ज्ञानस्वरूप छे
(समयसार गाथा. १७–१८ ना प्रवचनमांथी)
ज्ञानस्वरूप आत्मानी सेवा वडे मोक्षमार्ग थाय छे. दरेक
आत्मा ज्ञानस्वरूप होवा छतां ते पोते पोताने ज्ञानस्वरूपे केम नथी
सेवतो? ने ज्ञानस्वरूपे पोताने कई रीते सेववो? ते बंने वात अहीं
आचार्यदेवे समजावी छे.
भाई, कोई पण पदार्थने जाणतां तारुं ज्ञान तो भेगुं ज छे,
ज्ञाननी ज हयातीमां ते पदार्थो जाणी शकाय छे माटे ज्ञान ज मुख्य
छे.–एवा ज्ञानने तुं लक्षमां ले; ज्ञेयो साथे मिश्र कर्या वगरनुं जे
एकलुं ज्ञान, ते ‘शुद्ध ज्ञानस्वरूप ज हुं छुं’ एम अनुभवमां ले तो
मोक्षमार्ग प्रगटशे ने तारा साध्यनी सिद्धि थशे.
आवो सिद्धिमार्ग बधायने समजाय तेवी सुगम रीते अहीं
सन्तोए प्रसिद्ध कर्यो छे.
दरेक जीवने पोतानी ज्ञानदशा अनुभवमां आवे ज छे; अज्ञानथी ते रागद्वेषादि
परभावोना स्वादने साथे भेळवीने अनुभवे छे, पण तेमां परभावोथी भिन्न ज्ञानपणे
पोतानो जे स्वाद छे तेने जो ओळखे तो ज्ञानमात्र आत्मानुं ज्ञान थाय, अर्थात्
आत्मज्ञान थाय, ने एवा ज्ञानपूर्वक आत्मानुं साचुं श्रद्धान थाय. आ रीते
ज्ञानस्वरूपना श्रद्धा–ज्ञान थाय तो ज जीव पोताना स्वरूपमां ठरी शके, ने तो ज
मोक्षनी सिद्धि थाय.