Atmadharma magazine - Ank 303
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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३०३
विश्वनी विशाळता
(तेने जाणनार ज्ञाननी महानता)
सर्वज्ञ भगवंतोए साक्षात् जोयेलुं आ विश्व एटलुं
बधुं विशाळ छे के, सर्वज्ञने न माननारा जीवो तो तेनी
कल्पना पण न करी शके! जगतमां एटली बधी जीवो–
पुद्गलोनी संख्या छे, एटलुं विशाळ क्षेत्र छे, एटलो लांबो
काळ छे ने एवा गंभीर भावो छे–के जेने सर्वज्ञ ज साक्षात्
जाणी शके; सर्वज्ञने न अनुसरनारा एनी कल्पना पण करी
शके तेम नथी. एनी कल्पनानुं गजुं ज एटलुं नानुं छे के तेमां
विश्वनी विशाळता, के सर्वज्ञपदनी महत्ता समाई शके नहि,–
अरे एनो अनंतमो भाग पण न समाय! बलिहारी छे
सर्वज्ञना सामर्थ्यनी के जेणे आ अनंत विश्वने साक्षात् जाणी
लीधुं...ने वाणीद्वारा जगतने बताव्युं. साथे साथे एम पण
समजाव्युं के सर्वज्ञना अने जगतना अस्तित्वने जाणनारो
एवो जे आत्मस्वभाव ते ज जगतमां सौथी श्रेष्ठ छे.
(चर्चा)
तंत्री: जगजीवन बावचंद दोशी * संपादक : ब्र हरिलाल जैन
वीर सं. २४९प पोष (लवाजम: चार रूपिया) वर्ष २६: अंक ३