Atmadharma magazine - Ank 303
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : पोष : २४९प
सम्यग्दर्शन माटे प्राप्त
थयेलो सोनेरी अवसर
(मोहना क्षयनो अमोघ उपाय)
अहा, जे उपाय उल्लासथी सांभळतां पण मोहबंधन
ढीला पडवा मांडे....अने जेनुं ऊंडुं अंतर्मंथन करतां
क्षणवारमां मोह क्षय पामे एवो अमोघ उपाय सन्तोए
दर्शाव्यो छे. जगतमां घणो ज विरल ने घणो ज दुर्लभ एवो
जे सम्यक्त्वादिनो मार्ग, ते आ काळे सन्तोना प्रतापे सुगम
बन्यो छे...ए खरेखर मुमुक्षु जीवोना कोई महान सद्भाग्य
छे. आवो अलभ्य अवसर पामीने संतोनी छायामां बीजुं
बधुं भूलीने आपणे आपणा आत्महितना प्रयत्नमां
कटिबद्ध थईए.
स्वभावनी सन्मुखता वडे राग–द्वेष–मोहनो क्षय करीने जेओ सर्वज्ञ
अरिहंत परमात्मा थया, तेमणे उपदेशेलो मोहना नाशनो उपाय शुं छे? ते
अहीं आचार्यदेव बतावे छे. पहेलां एम बताव्युं के भगवान अर्हंतदेवनो
आत्मा द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेथी शुद्ध छे, एमना आत्माना शुद्ध द्रव्य–गुण–
पर्यायने ओळखीने, पोताना आत्माने तेनी साथे मेळवतां, ज्ञान अने रागनुं
भेदज्ञान थईने, स्वभाव अने परभावनुं पृथक्करण थईने, ज्ञाननो उपयोग
अंतरस्वभावमां वळे छे, त्यां एकाग्र थतां गुण–पर्यायना भेदनो आश्रय पण
छूटी जाय छे, ने गुणभेदनो विकल्प छूटीने, पर्याय शुद्धात्मामां अंतर्लीन थतां
मोहनो क्षय थाय छे.
ए रीते भगवान अर्हंतना ज्ञानद्वारा मोहना नाशनो उपाय बताव्यो; हवे
ए ज वात बीजा प्रकारे बतावे छे–तेमां भगवाने कहेला शास्त्रना ज्ञानद्वारा
मोहना नाशनी रीत बतावे छे: प्रथम तो जेणे प्रथम भूमिकामां गमन कर्युं छे एवा
जीवनी वात छे. सर्वज्ञभगवान केवा होय? मारो आत्मा केवो छे? मारा आत्मानुं
स्वरूप समजीने मारे