Atmadharma magazine - Ank 303
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९प आत्मधर्म : १९ :
छे. आचार्य–उपाध्याय–साधु त्रणे थईने नव करोडमां थोडा ओछा छे.
(पांचमा अने चोथा गुणस्थानवाळा जीवो असंख्यात छे)
(३) जगतमां क्षायिक सम्यग्द्रष्टि जीवो केटला?–अनंता.
(४) समयसारमां अधिकार केटला? तेनां नाम?
समयसारमां नव अधिकार, तेनां नाम–(१) जीव–अजीवअधिकार (२)
कर्ताकर्म (३) पुण्य–पाप (४) आस्रव (प) संवर (६) निर्जरा (७)
बंध (८) मोक्ष अने (९) सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार. (कुल गाथा
४१प)
भगवाननी कथा
प्रश्न:– जैनकथानुयोगमां (प्रथमानुयोगमां) आत्माना अनुभवनी वात
होय? (स. नं. २२२२)
उत्तर:– हा, जैनकथाओमां पण तीर्थंकरादि महापुरुषोना अनेक भवनुं
वर्णन होय छे तेमां, ते आत्माओ ज्ञान पाम्या पहेलां केवा हता, पछी कोना
उपदेशथी केवा प्रकारे आत्मज्ञान पाम्या, ने पछी आत्मिक विकास करीने कई
रीते परमात्मा थया–ते बधानुं अद्भुत वर्णन होय छे–के जे आपणने तेवा
ज्ञाननी प्रेरणा आपे छे. बीजुं, ए लक्षमां राखवुं के जैनधर्मना कथानुयोगमां
बीजा त्रण (द्रव्यानुयोग वगेरे) अनुयोगोनुं कथन पण गर्भितपणे समायेलुं
ज होय छे. आत्मानी साधना करनारा जीवोनुं उदाहरण आपीने कथानुयोग ते
वात आपणने समजावे छे. भगवाने केवो उपदेश आप्यो, अनेक जीवो
सम्यग्दर्शनादि कई रीते पाम्या, केवा केवा प्रसंगोमां वैराग्य पामी जीवो मुनि
थया, ने केवी रीते केवळज्ञान प्रगट कर्युं–ए बधानुं वर्णन कथानुयोगमां भर्युं
छे. जैनधर्मनी कथा ए तो भगवाननी कथा छे ने! ए तो आत्माने भगवान
थवानो उपदेश आपे छे.