
झरा चैतन्यसरोवरमांथी वहे छे.
अंतरमां स्वसन्मुख स्वसंवेदन जाग्युं त्यारे ते जीव द्रव्यश्रुतना रहस्यने पाम्यो. ज्यां
एवुं रहस्य पाम्यो त्यां अंतरनी अनुभूतिमां आनंदना झरणां झरवा मांडया...शास्त्रना
अभ्यासथी, तेना संस्कारथी विशिष्ट स्वसंवेदन शक्तिरूप संपदा प्रगट करीने, आनंदना
फूवारा सहित प्रत्यक्षादि प्रमाणथी यथार्थ वस्तुस्वरूप जाणतां मोहनो क्षय थाय छे.
अहो, मोहना नाशनो अमोघ उपाय–कदी निष्फळ न जाय एवो अफर उपाय संतोए
प्रसिद्ध कर्यो छे.
आनंदना फूवारा छे. प्रत्यक्ष सहित परोक्ष प्रमाण होय तो ते पण आत्माने यथार्थ जाणे
छे. प्रत्यक्षनी अपेक्षा वगरनुं एकलुं परोक्षज्ञान तो परालंबी छे. ते आत्मानुं यथार्थ
संवेदन करी शकतुं नथी. आत्मा तरफ झूकीने प्रत्यक्ष थयेलुं ज्ञान, अने तेनी साथे
अविरुद्ध एवुं परोक्षप्रमाण, तेनाथी आत्माने जाणतां अंदरथी आनंदनां झरणां वहे
छे.–आ सम्यग्दर्शन प्राप्त करवानो ने मोहनो नाश करवानो अमोघ उपाय छे.
छे....पछी तेमां ज लीन थतां पूर्ण शुद्धात्मानी प्राप्ति थाय छे ने सर्व मोहनो नाश थाय
छे. बधाय तीर्थंकर भगवंतो अने मुनिवरो आ ज एक उपायथी मोहनो नाश करीने
मुक्ति पाम्या...ने तेमनी वाणीद्वारा जगतने पण आ एक ज मार्ग उपदेश्यो. आ एक
ज मार्ग छे ने बीजो मार्ग नथी–एम पहेलां कह्युं हतुं; ने अहीं गाथा ८६ मां कह्युं के
सम्यक्प्रकारे श्रुतना अभ्यासथी, तेमां क्रीडा करतां तेना संस्कारथी विशिष्ट
ज्ञानसंवेदननी शक्तिरूप संपदा प्रगट करतां, आनंदना उद्भेद सहित भावश्रुतज्ञान वडे
वस्तुस्वरूप जाणतां मोहनो नाश थाय छे. आ रीते भावज्ञानना अवलंबनवडे द्रढ
परिणामथी द्रव्यश्रुतनो सम्यक् अभ्यास ते मोहक्षयनो उपाय छे.–आथी एम न
समजवुं के पहेलां कह्यो हतो ते उपाय अने अहीं कह्यो ते उपाय जुदा प्रकारनो छे; कांई
जुदा जुदा बे