: पोष : २४९प आत्मधर्म : २३ :
उपाय नथी. एक ज प्रकारनो उपाय छे. ते जुदी जुदी शैलीथी समजाव्यो छे.
अरिहंतदेवनुं स्वरूप ओळखवा जाय तो तेमां आगमनो अभ्यास आवी ज जाय
छे, केमके आगम वगर अरिहंतनुं स्वरूप क्यांथी जाणशे? अने सम्यक् द्रव्यश्रुतनो
अभ्यास करवामां पण सर्वज्ञनी ओळखाण भेगी आवे ज छे केमके आगमना मूळ
प्रणेता तो सर्वज्ञ अरिहंतदेव छे, तेमनी ओळखाण विना आगमनी ओळखाण
थाय नहि.
हवे ए रीते अरिहंतनी ओळखाण वडे, के आगमना सम्यक् अभ्यास वडे,
ज्यारे स्वसन्मुखज्ञानथी आत्माना स्वरूपनो निर्णय करे त्यारे ज मोहनो नाश थाय छे.
एटले बंने शैलीमां मोहना नाशनो मूळ उपाय तो आ ज छे के शुद्ध चेतनथी व्याप्त
एवा द्रव्य–गुण–पर्यायस्वरूप शुद्ध आत्मामां स्वसन्मुख थवुं. अहीं एकला शास्त्रना
अभ्यासनी वात नथी करी, पण ‘भावश्रुतना अवलंबनवडे द्रढ करेला परिणामथी
(प्रवचनसार गा. ८६ उपरना प्रवचनमांथी)
दुःख........अने शांति
–कोई कोई वार अनेकविध दुःखिया जीवो पू.
गुरुदेव पासे आवीने दुःख वेदना ठालवे छे...
त्यारे गुरुदेव कहे छे : भाई! संसार तो
दुःखथी भरेलो छे, ए दुःखथी छूटवुं होय तो तारे आ
शुद्ध आत्मानो अनुभव कर्ये ज छूटको छे. एना
सिवाय तारा लाख उपाय पण नकामा छे.
अने ज्यां अंदर एक आत्मा सामे जोयुं त्यां
बहारनी लाख प्रतिकूळता वच्चे पण समाधान ने
शांति थई शके छे.