: ४३ : आत्मधर्म : पोष : २४९प
शत्रुंजय–सन्देश
युद्धनी वच्चे पण जे स्थिर रहे ते युधिस्थिर.
अनेकविध संयोग–वियोग, तथा परभावो ते रूप जे युद्ध, तेनी वच्चे
पण पोताना ज्ञानने जे स्थिर राखे छे, परभावोथी जरापण चलित
थतो नथी, एवो युधिस्थिर स्थिरउपयोगवडे शत्रुओनो जय करीने
सिद्धपद पामे छे. आवा “युद्धि–स्थिर” बनवानो सन्देश आ सिद्धक्षेत्र
आपे छे.
भीम एटले पराक्रमी!–जे कोईथी डरे नहि, जेने कोई जीती शके नहि, राक्षसोनो
जे नाश करे...तेम प्रतिकूळताना गंज वच्चे पण नीडरपणे पोताना
आत्मवीर्यरूप पराक्रम वडे जे मोहादि–क्रोधादि राक्षसोने जीती ल्ये छे, ते
भीम मोक्ष पामे छे ने आ तेमनी मोक्षभूमि एवो सन्देश आपे छे के हे
जीव! तुं पण भीमनी जेम नीडर अने पराक्रमी थईने गमे ते
परिस्थितिमां आत्माने साधजे.
अर्जुन...ते एवो बाणावळी के जेनुं लक्ष कदी खाली न जाय, पोताना लक्ष्य प्रत्ये
ज लक्षने एकत्व करीने तेने साधे...आ रीते अंदर चैतन्यने ज लक्ष्य
बनावीने, बीजे बधेथी लक्ष हठावीने ते लक्ष्यमां ज लक्षने एकाग्र कर्युं,
ने सिद्धपद साध्युं...ते लक्ष्यवेधी अर्जुनभगवाननो एवो सन्देश आ
सिद्धक्षेत्र संभळावे छे के तारा ईष्टनी सिद्धिने माटे जगतने भूलीने–
संयोगथी लक्ष हठावीने, चैतन्यस्वभावरूप एक लक्ष्यमां ज लक्षने
एकाग्र करीने ध्यानरूपी तीर चलावतां तने तारुं ईष्ट एवुं सिद्धपद प्राप्त
थशे...ने तारा शत्रुओ जीताई जशे. आ छे शत्रुंजयसन्देश?
बीजा बे भाई सहदेव अने नकुल...तेओ मोक्ष न पामतां स्वर्गमां गया केमके
‘पोताना भाईओनुं शुं थतुं हशे!’ एवी चिन्तामां तेओ रोकाई गया...ने लक्षनी
एकाग्रता चुकी गया...तेओ एवो सन्देश आपे छे के हे जीवो! पारकी चिन्तामां रोकाशो
नहि.. स्वलक्षने ज साधवामां ‘स्थिर’ रहीने ‘पराक्रम’ वडे ते लक्षमां उपयोगने
‘एकाग्र’ करजो. आ रीते युधिष्ठिर–भीम ने अर्जुन शत्रुंजयना शिखर परथी स्थिरता–
वीरता ने एकाग्रतानो सन्देश आपे छे.