रहित छे, ने तेनी बधी शुभाशुभक्रियाओ अज्ञानमय छे, मिथ्या छे. एककोर
सर्वज्ञस्वभाव अने तेनी सामे अज्ञान, सर्वज्ञस्वभावनी प्रतीत वगरनुं जे कांई छे ते
बधुंय अज्ञानमां जाय छे, तेनुं फळ संसार छे. रागनो एक कणियो पण सर्वज्ञस्वभावमां
समाय तेम नथी. रागनो अंश पण भेगो भेळवे तो सर्वज्ञस्वभाव ज सिद्ध न थाय.
एटले रागना कोई पण अंशमां जेने धर्मबुद्धि छे, तेणे सर्वज्ञस्वभावी आत्माने मान्यो
नथी. सर्वज्ञस्वभावी आत्माने मानतां रागथी भेदज्ञान थई ज जाय छे.
दुर्बुद्धिजीवोनां कहेलां आगमो तो मिथ्यासमय छे. अरिहंत अने सिद्ध परमात्मा जेवो ज
आ आत्मा सर्वज्ञस्वभावी छे, पोते ज परमात्मा थई शके छे–एम जे न बतावे ने सदाय
अधूरो, दास, पामर के पराधीन ज मनावे, राग वडे आत्मप्राप्ति थवानुं कहे. बीजानी
सेवाथी मोक्ष थवानुं कहे एटले के पराश्रयभावने पोषे–तो ते जिनागम नथी, साचा
आगम नथी, ए तो मिथ्यात्वपोषक परसमय छे; तेनी श्रद्धा छोडवानो उपदेश छे.
रागथी विरक्ति करावीने ज्ञानस्वभावमां एकाग्रता करावे छे, ने ए ज मोक्षमार्ग छे.
वीतरागनो उपदेश तो वीतरागता माटे ज होयने! ऊंडे ऊंडे क्यांय पण रागना
पोषणनो अभिप्राय राखे तो ते जीव वीतरागउपदेशने समज्यो नथी. भाई! पोताना
हित माटे साचा आगमनी ओळखाण करवी जोईए. हित माटेनो क्यो उपदेश छे, ने
क्यो तेनाथी विरुद्ध उपदेश छे–तेनो विचार करीने साचा खोटानो निर्णय करवो जोईए.
एमने एम आंधळी दोडे मोक्षनो मार्ग हाथ न आवे.
आवो मोक्षमार्ग छे, पण रागवाळो मोक्षमार्ग नथी. साचा ज्ञान वडे ज