Atmadharma magazine - Ank 304
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: महा : २४९प आत्मधर्म : ११ :
मोक्षमार्गने साधी शकाय छे. साचा ज्ञानवाळो जीव शुं करे? के मोक्षना अनायतन एवा
कुदेव–कुगुरु–कुधर्मने छोडे, तथा ते कुदेवादिने माननारा एवा मिथ्यामतिजीवोनो संग
पण ते छोडे. अने वीतरागी देव–गुरु–धर्मने ओळखीने तेमना कहेला वीतरागमार्गनुं
सेवन करे. वीतरागे कहेला चारे अनुयोगनो अभ्यास करवा योग्य छे; ते चारे
अनुयोग वीतरागताना ज पोषक छे. सर्वज्ञस्वभावी आत्माना भान विना अज्ञानथी
जे राग क्रियाओ करीने तेने धर्म माने छे तेमां तो एकला मिथ्याभावनुं सेवन छे,
एटले एकलो अधर्म छे. ज्ञानस्वरूप ने आनंदस्वरूप आत्मा ज्यां न जाण्यो त्यां धर्म
केवो? ने सुख केवुं?
स्ववीर्यथी सिद्धपद.....(राग ते जाणवानी चीज छे. साधवानी नहि)
सिद्ध भगवान जेवो सर्वज्ञस्वभावी मारो आत्मा छे–एम जाणीने साधकजीव
स्वयं ते स्वभावना साधन वडे ज सर्वज्ञपदने साधे छे. अनंतचतुष्टय प्रगटवानुं साधन
पोतानो स्वभाव ज छे, रागना साधन वडे ते सधाता नथी. राग ते जाणवानी चीज
छे, ते साधवानी चीज नथी; साधवानी चीज तो ज्ञानस्वभावी आत्मा छे. साधकना
वीर्यनी गति पोताना चिदानंद स्वभाव तरफ छे. स्वभाव तरफना वीर्य वडे सिद्धिनी
प्राप्ति थाय छे; स्वभावसन्मुख शुद्धोपयोगना बळथी आत्मा भावसमुद्रने तरीने लोकोग्रे
पहोंचे छे. आ रीते स्ववीर्य ज तारणहार छे; बीजुं कोई तारणहार नथी. आत्म
स्वभावना पुरुषार्थ वडे अनंता जीवो संसारने तरीने सिद्धपद पाम्या छे. आवो पुरुषार्थ
ते स्ववीर्य छे. पुण्य–पाप तरफनुं वीर्य ते खरूं स्ववीर्य नथी, तेना वडे कोई जीवो
संसारथी तर्या नथी. शुद्धोपयोगरूप स्ववीर्यथी सिद्धि पमाय छे, शरीरना बळथी के
रागना बळथी सिद्धि पमाती नथी.
सिद्ध भगवान पोताना वीर्यथी सिद्धि पाम्या छे. आत्मानुं स्ववीर्य ज तरण–
तारण छे, ते पोते ज पोताने तारनार छे; अने सिद्धने साधनारूं ते स्ववीर्य निजानंद
सहित छे, हितकारी छे, अनंत ज्ञान परिणमन सहित छे अने कोमलस्वभावरूप छे,
शांत छे. कोई बीजो तारणहार नथी पण आत्मानुं स्वसन्मुख वीर्य ते ज तारणहार छे.
वीर्य हंमेशा ज्ञान–आनंद सहित छे.
जुओ, आ तरवानो उपाय! वज्रशरीर हो, पण ते परद्रव्य छे, ते सिद्धिनुं
साधन नथी; राग तो सिद्धिनी प्राप्ति वखते होतो ज नथी, एटले ते सिद्धिनुं साधन
नथी, ते तो उल्टो सिद्धिमां बाधक छे. सिद्धिनुं साधन तो अंतर्मुखी स्ववीर्य छे, ते
आत्मवीर्य ज तारणहार छे; ते वीर्य पोतामां ज्ञान–आनंदनी रचना करनारुं छे, पण
बीजाने रचे के बीजाने तारे–एवुं आत्मवीर्यनुं काम नथी. वीतरागी देव–गुरु–वाणी
तरवामां निमित्तरूप छे पण ते स्वथी भिन्न छे, आ आत्माना शुद्धोपयोगनी रचनाना
कर्ता ते नथी. आत्मा पोते ज स्ववीर्य वडे शुद्धोपयोगनी रचना करीने सिद्धि पामे छे.