: १२ : आत्मधर्म : महा : २४९प
मोक्षमां जवानुं साथीदार कोण?
आ मोक्षना कारणरूप जे स्ववीर्य छे ते आनंदनुं सहकारी छे, पण रागनुं
सहकारी नथी, रागनुं तो ते नाशक छे. आवुं आत्मवीर्य आत्मानुं हितकारी छे, ने
अनंत गुणोनी निर्मळतानी रचना करवामां ते सहकारी छे. जुओ, आ मोक्षनुं
साथीदार! मोक्ष जवामां साथीदार कोण? के तारुं आत्मवीर्य ते ज तारुं साथीदार छे; ते
ज सगुं ने सारथि छे. स्वमां लीन थईने अनंतगुणनी निर्मळ–पर्यायने ते रचे छे, पण
रागमां ते लीन थतुं नथी, रागने रचतुं नथी. आवुं कोमळ–सहज–सीधुं सरळ वीर्य ते
केवळज्ञाननी प्राप्तिनुं साधन छे. आवा साधन वडे सिद्धभगवंतोए सिद्धपदने साध्युं छे.
राग–द्वेष ते तो कठोर छे, ने आ वीतरागी स्ववीर्य कोमळ स्वभावी छे; केवळज्ञाननुं
साथीदार थईने ते आत्माने भवसागरथी तारी ल्ये छे तेथी ते तरण–तारण छे. आ
स्ववीर्यना बळे आत्मा सदा आनंदमां लीन रहे छे, ते सदाकाळ विश्वने जाण्या करे
तोपण तेने थाक लागतो नथी. सदाकाळ पोताना केवळज्ञानादि स्वभावने रच्या करे
एवुं वीर्यगुणनुं सामर्थ्य छे.
आ रीते ज्ञान अने आनंदनी जेम श्रद्धा–चारित्र वगेरे सर्वे गुणोना
परिणमनमां वीर्यनुं सहकारीपणुं छे, पण एक्केय गुणना निर्मळ परिणमनमां रागनुं
सहकारीपणुं नथी. सादि–अनंतकाळसुधी केवळज्ञान अने अतीन्द्रिय आनंदरूपे
परिणम्या करे छतां आत्मानुं वीर्य एवी ताकातवाळुं छे के तेने कदी जरापण थाक
लागतो नथी, सदाय एवो ने एवो ताजेताजो रहे छे. एक समयमां अनंता स्वगुणनी
निर्मळपर्यायने रचे एवी आत्मवीर्यनी ताकात छे; रागमां एवी ताकात नथी. आ रीते
राग अने स्ववीर्य भिन्न छे. अहो! जैनतत्त्व अलौकिक छे; एना सूक्ष्म न्यायो समजतां
अपूर्व भेदज्ञान थाय छे. आ कोई साधारण वात नथी, पण सर्वज्ञ परमेश्वर अरिहंतदेवे
जाणेलां ने कहेलां तत्त्वो छे.
जैनधर्मना चारे अनुयोगमां आत्मशुद्धिनुं ज तात्पर्य छे
आत्महितना हेतुए शास्त्रना चारे अनुयोगनो अभ्यास करवानुं कह्युं छे; शुद्ध
द्रष्टिना उद्यमपूर्वक गृहस्थ–श्रावकोए चारे अनुयोगनो अभ्यास करवो. प्रथम
कथानुयोगमां २४ तीर्थंकर भगवंतोनुं तथा गणधरादि महापुरुषोनुं जीवन छे, तेमां
जीवने अधर्मनी रुचि छूटे ने धर्मनी रुचि वधे तेवी कथाओ द्वारा उपदेश आप्यो छे.
द्रव्यानुयोगमां छद्रव्योनुं स्वरूप बतावीने तेमां शुद्धात्मानो महिमा बताव्यो छे, तेना
अनुभवनी रीत बतावी छे, निश्चय–व्यवहार बंने बतावीने निश्चयस्वरूपमां आरूढ
थवानुं कह्युं छे. भगवाननी वाणीमां चारे अनुयोग आव्या छे; जेने चारे अनुयोगमांथी
कोईनी अरुचि छे तेने अध्यात्मनी रुचि नथी. पं. टोडरमल्लजीए मोक्षमार्गप्रकाशकमां
आठमा अध्यायमां चारे अनुयोगना उपदेश संबंधी सरस स्पष्टीकरण कर्युं छे.